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गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर

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यह लेख आपको गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर के इतिहास, महत्व और रहस्य से परिचित करायेगा। आप चाहे धर्म के गहन अध्येता हों या फिर आध्यात्मिक शांति की तलाश में हों, कामाख्या मंदिर आपकी यात्रा को यादगार बना देगा।

चलिए, शुरू करते हैं इस यात्रा को, नीलांचल की पहाड़ियों पर विराजमान कामाख्या देवी के दर्शन के लिए।

गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर-कहानी शुरू होती है नीलांचल की पहाड़ियों पर

गुवाहाटी शहर का आध्यात्मिक केंद्र

गुवाहाटी शहर के पश्चिमी भाग में स्थित नीलांचल पहाड़ियाँ न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं, बल्कि इनका धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है। इन पहाड़ियों को गुवाहाटी का आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है, जहाँ कई मंदिर स्थित हैं। इनमें से सबसे प्रमुख है कामाख्या मंदिर।

कहा जाता है कि नीलांचल पहाड़ियों का नामकरण भगवान शिव के नीले गले के कारण हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सती के शरीर के अंग पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिरे थे, जिन्हें शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। इन शक्तिपीठों में से एक है कामाख्या मंदिर, जहाँ माता सती का योनिपट्ट (योनि) गिरा था।

गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर

नीलांचल पहाड़ियों का धार्मिक महत्व

नीलांचल पहाड़ियों का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे – कलिका पुराण, योगिनी तंत्र और कामरूप चरित्त्र में भी मिलता है। इन ग्रंथों में इन पहाड़ियों को शक्ति उपासना का केंद्र बताया गया है।

यहाँ स्थित कामाख्या मंदिर के अलावा भी कई महत्वपूर्ण मंदिर हैं, जिनमें सिद्धेश्वर नाथ मंदिर, गणेश मंदिर और उग्रतारा मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों के दर्शन के लिए भी देशभर से श्रद्धालु आते हैं।

नीलांचल पहाड़ियों की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह और दूर क्षितिज पर फैला हरा-भरा मैदान, इस स्थान की धार्मिक महत्ता को और भी प्रभावशाली बनाता है।

कामाख्या देवी: शक्ति का प्रतीक

विभिन्न रूपों वाली देवी

कామख्या मंदिर देवी सती के एक विशिष्ट रूप – कामाख्या देवी को समर्पित है। हिंदू धर्म में शक्ति की उपासना का विशेष महत्व है। देवी कामाख्या को शक्ति का ही एक रूप माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, कामाख्या देवी दश महाविद्याओं में से एक हैं। इन दश महाविद्याओं को शक्ति के दस भयंकर रूप माना जाता है, जो सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कामाख्या देवी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है, जिनकी अलौकिक सुंदरता का वर्णन शास्त्रों में मिलता है।

कहानी कहती है कि भगवान शिव सती के स जलने के दुःख से व्याकुल होकर उन्हें अपने कंधे पर लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के विभिन्न अंगों को अलग-अलग स्थानों पर चक्र से काट दिया, जिससे शिव का क्रोध शांत हो सके। माता सती का योनिपट्ट (योनि) उसी समय असम की नीलांचल पहाड़ियों पर गिरा था, जहां आज कामाख्या देवी का मंदिर स्थित है।

गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर

पौराणिक कथाओं में कामाख्या देवी

कई पौराणिक कथाएँ कामाख्या देवी की उत्पत्ति और शक्ति से जुड़ी हैं। इनमें से एक कथा कामदेव दहन से जुड़ी है।

कथा के अनुसार, कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था, जिसके कारण शिव ने उन्हें अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था। पार्वती के अनुरोध पर शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित किया। माना जाता है कि कामदेव के पुनर्जन्म के लिए ही कामाख्या देवी प्रकट हुई थीं।

एक अन्य कथा के अनुसार, दक्षिणामूर्ति रूप में विराजमान भगवान शिव के शरीर से अत्यधिक गर्मी निकलने लगी। इस गर्मी को शांत करने के लिए माता सती यज्ञ स्थल पर प्रकट हुई थीं। इन्हें ही कामाख्या देवी के रूप में जाना जाता है।

एक अनूठा मंदिर परिसर

कామख्या मंदिर परिसर कई मायनों में अद्वितीय है। यह परिसर न केवल धार्मिक महत्व का प्रतीक है, बल्कि यहां की वास्तुकला और परंपराएं भी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

गर्भगृह के रहस्य

कमाख्या मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है इसका गर्भगृह। यह गर्भगृह प्राकृतिक रूप से निर्मित एक गुफा के भीतर स्थित है। मान्यता है कि इस गुफा में माता सती का योनिपट्ट विराजमान है। गर्भगृह के अंदर किसी भी तरह की मूर्ति स्थापित नहीं है।

गर्भगृह में पूजा-अर्चना एक अनोखे तरीके से की जाती है। यहां पुष्पांजलि या जल चढ़ाने की परंपरा नहीं है। बल्कि, देवी को सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते आदि अर्पित किए जाते हैं।

गर्भगृह से निकलने वाला जल साल में तीन दिनों के लिए लाल हो जाता है। इस प्राकृतिक घटना को “अंबुबाची मेला” के रूप में मनाया जाता है, जिसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।

मंदिर परिसर के अन्य मंदिर

केंद्रीय मंदिर के अलावा, कामाख्या मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर भी स्थित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों की जानकारी निम्न तालिका में दी गई है:

मुख्य मंदिरमहत्व
सिद्धेश्वर नाथ मंदिरयह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि भगवान शिव सती के वियोग में इसी स्थान पर तपस्या में लीन थे।
गणेश मंदिरहिंदू धर्म में प्रथम पूज्य माने जाने वाले गणेश जी को समर्पित यह मंदिर, मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले दर्शन करने के लिए प्रसिद्ध है।
उग्रतारा मंदिरदेवी सती के क्रोध का प्रतीक मानी जाने वाली उग्रतारा देवी को समर्पित यह मंदिर, तांत्रिक पूजा के लिए जाना जाता है।
सरस्वती मंदिरविद्या की देवी सरस्वती को समर्पित यह मंदिर, विद्यार्थियों और कलाकारों के बीच काफी लोकप्रिय है।
मनसा मंदिरसर्प देवी मनसा को समर्पित यह मंदिर, सर्पदंश से रक्षा पाने के लिए पूजा करने वालों के बीच प्रसिद्ध है।
इन मंदिरों के अलावा परिसर में कई छोटे मंदिर और मठ भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं। ये सभी मिलकर कामाख्या मंदिर परिसर को एक विशाल धार्मिक केंद्र का रूप देते हैं।

तांत्रिक परंपराओं का केंद्र

कमाख्या मंदिर न केवल शक्ति उपासना का केंद्र है, बल्कि यह तांत्रिक परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। तांत्रिक परंपरा में शक्ति की उपासना को विशेष महत्व दिया जाता है।

कामाख्या मंदिर और तंत्र साधना

कहानी कहती है कि प्राचीन काल में कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधनाओं का एक प्रमुख केंद्र था। यहां तांत्रिक विद्याओं का अध्ययन और अभ्यास किया जाता था। हालांकि, वर्तमान समय में मंदिर परिसर में खुले रूप से तांत्रिक अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं। फिर भी, माना जाता है कि गुप्त रूप से आज भी यहां तांत्रिक अनुष्ठान होते रहते हैं।

कमाख्या मंदिर में तांत्रिक परंपराओं के प्रभाव को मंदिर की वास्तुकला और परंपराओं में भी देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, गर्भगृह में किसी भी तरह की मूर्ति का न होना और पूजा की अनोखी विधि, तांत्रिक प्रभाव की ओर ही संकेत करती हैं।

गुवाहाटी का रहस्यमय धाम:माँ कामाख्या मंदिर

अंबुबाची मेला: एक अनोखा उत्सव

कमाख्या मंदिर में साल में एक बार अंबुबाची मेला का आयोजन किया जाता है। यह मेला काफी अनोखा होता है और इसे प्रकृति के चमत्कार के रूप में भी देखा जाता है।

इस मेले के दौरान मंदिर का गर्भगृह तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। इन तीन दिनों में गर्भगृह से निकलने वाला जल लाल हो जाता है। इसे देवी के रजस्वला होने का प्रतीक माना जाता है। इस अवधि के दौरान मंदिर में कोई भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती है।

तीन दिनों के बाद मंदिर का गर्भगृह खोला जाता है और “शाही स्नान” नामक अनुष्ठान किया जाता है। इसके बाद ही श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के दर्शन खोल दिए जाते हैं। अंबुबाची मेला भारत के अन्य मंदिरों में मनाए जाने वाले किसी भी मेले से भिन्न है और इसकी मान्यताएं भी काफी अनोखी हैं।

भक्तों के लिए यात्रा का आयोजन

अगर आप कामाख्या मंदिर की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो ये कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जिन्हें आपको ध्यान में रखना चाहिए:

मंदिर तक पहुंचना

कमाख्या मंदिर गुवाहाटी शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप यहां सड़क मार्ग, रेल मार्ग या हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं।

  • सड़क मार्ग: गुवाहाटी शहर से आप टैक्सी या रिक्शा किराए पर लेकर कामाख्या मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, असम राज्य परिवहन निगम की बसें भी नियमित रूप से मंदिर तक जाती हैं।
  • रेल मार्ग: गुवाहाटी में रेलवे स्टेशन है, जहां देश के विभिन्न शहरों से ट्रेनें आती हैं। स्टेशन से आप टैक्सी या रिक्शा लेकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
  • हवाई मार्ग: गुवाहाटी में लोकप्रिय लोकेशन गोपीनगर बरपानी में लोकेप्रिय लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी किराए पर लेकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

पूजा-अर्चना की व्यवस्था

कमाख्या मंदिर में पूजा-अर्चना की व्यवस्था काफी सरल है। मंदिर परिसर में ही आपको पूजा का सामान जैसे – फूल, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते आदि मिल जाएंगे।

मंदिर में पुजारी भी मौजूद होते हैं, जो विधि-विधान से पूजा करवाते हैं। अगर आप पहली बार आ रहे हैं, तो आप इन पुजारियों की मदद ले सकते हैं। गर्भगृह के अंदर जाने की अनुमति नहीं है, इसलिए आप बाहर से ही दर्शन कर सकते हैं।

मंदिर परिसर में रहने की व्यवस्था

कमाख्या मंदिर परिसर के आसपास कई तरह के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। आप अपने बजट के अनुसार इनमें से कोई भी चुन सकते हैं। मंदिर परिसर में ही कामाख्या देवी विश्राम गृह भी है, जहां आप रुक सकते हैं।

ध्यान दें कि विशेष त्योहारों और अंबुबाची मेले के दौरान होटलों में काफी भीड़ हो जाती है, इसलिए ऐसे समय में पहले से ही कमरा बुक करा लेना उचित रहता है।

आध्यात्मिक अनुभव से परे

कमाल की बात यह है कि कामाख्या मंदिर की यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुभव ही नहीं है, बल्कि यह गुवाहाटी शहर की सुंदरता को निहारने का भी एक शानदार अवसर प्रदान करती है।

गुवाहाटी के अन्य दर्शनीय स्थल

कमाख्या मंदिर के दर्शन के बाद आप गुवाहाटी शहर के अन्य दर्शनीय स्थलों की भी सैर कर सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में नीचे बताया गया है:

  • ब्रह्मपुत्र नदी: गुवाहाटी शहर के बीचों बीच बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की खूबसूरती देखने लायक है। आप यहां नदी के किनारे घूमने का आनंद ले सकते हैं या फिर बोट राइडिंग का मजा ले सकते हैं।
  • अश्वकर्ण गणेश मंदिर: यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भगवान गणेश की एक असामान्य प्रतिमा है, जिसमें उनके एक सिर के साथ एक घोड़े का मुख भी है।
  • सूर्य मंदिर: नदील पहाड़ी पर स्थित सूर्य मंदिर सूर्योदय देखने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। यहां से सूर्योदय का नजारा मनमोहक होता है।
  • असम राज्य संग्रहालय: गुवाहाटी में स्थित असम राज्य संग्रहालय में असम के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह देखने को मिल सकते हैं।

यात्रा को यादगार बनाने के टिप्स

अपनी कामाख्या मंदिर यात्रा को यादगार बनाने के लिए आप ये कुछ आसान टिप्स अपना सकते हैं:

  • आरामदायक कपड़े पहनें: मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ सकती है, इसलिए आरामदायक कपड़े और जूते पहनकर आएं।
  • मौसम का ध्यान रखें: गर्मी के दिनों में यात्रा करने से बचें। मानसून के दौरान भी मंदिर परिसर में फिसलन हो सकती है, इसलिए इस दौरान भी सावधानी बरतें।
  • पूजा का सामान साथ लाएं: आप चाहें तो पूजा का सामान अपने साथ भी ला सकते हैं। हालांकि, मंदिर परिसर में भी ये चीजें आसानी से मिल जाती हैं।
  • स्थानीय भोजन का आनंद लें: गुवाहाटी में असम का स्वादिष्ट स्थानीय भोजन मिलता है। आप मंदिर के आसपास या फिर शहर में घूमते हुए इन व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं।
  • स्थानीय बाजारों की सैर करें: मंदिर परिसर के आसपास कई छोटे-छोटे बाजार हैं, जहां आप असम की हस्तशिल्प वस्तुएं, कपड़े और स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं।
  • पर्यावरण का सम्मान करें: प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें और मंदिर परिसर को साफ रखने में सहयोग दें।

निष्कर्ष: श्रद्धा और इतिहास का संगम

कहने को तो कामाख्या मंदिर एक धार्मिक स्थल है, लेकिन वास्तव में यह इतिहास, संस्कृति, परंपरा और आस्था का संगम है। सदियों से श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचने वाला यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि असम की समृद्ध विरासत को भी अपने में समेटे हुए है।

चाहे आप धर्म के गहन अध्येता हों या फिर आध्यात्मिक शांति की तलाश में हों, कामाख्या मंदिर आपकी यात्रा को अवश्य ही यादगार बना देगा। तो देर किस बात की, अपनी यात्रा की योजना बनाएं और कामाख्या देवी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करें।

कामाख्या मंदिर का क्या महत्व है?

कामाख्या मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि सती के मृत शरीर का यहाँ योनि (जननेन्द्रिय) गिरा था। यह मंदिर मां दुर्गा के गुप्त रूप कामाख्या को समर्पित है। मंदिर तांत्रिक पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है।

कामाख्या मंदिर की किंवदंती क्या है?

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव दक्षिणा यज्ञ में सती के आत्मदाह से क्रोधित होकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे। विष्णु अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया था, जो बाद में शक्तिपीठों के रूप में पूजे जाने लगे।

कामाख्या मंदिर की वास्तुकला कैसी है?

कामाख्या मंदिर परिसर में कई मंदिर और मंडप हैं। मुख्य मंदिर का शिखर पिरामिडनुमा है, जो असम की मंदिर शैली का एक उदाहरण है। गर्भगृह प्राकृतिक रूप से निर्मित एक गुफा है, जहाँ माता कामाख्या की पूजा की जाती है।

कामाख्या मंदिर में क्या-क्या देखने लायक है?

कामाख्या मंदिर परिसर में कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें शामिल हैं:
कामाख्या देवी का गर्भगृह: यह मंदिर का सबसे पवित्र स्थान है।
अंबुवाची पूजा: यह मंदिर का वार्षिक उत्सव है, जो प्रचुर मात्रा में होने वाले रजस्वला समारोहों के लिए जाना जाता है। (इस दौरान मंदिर कुछ दिनों के लिए बंद रहता है।)
षोडश गुफाएं: परिसर में 16 गुफाएं हैं, जिनमें से कुछ का संबंध तांत्रिक पूजा से माना जाता है।
कामाख्या कुंड: यह प्राकृतिक झरना मंदिर परिसर के अंदर स्थित है।

माँ कामाख्या मंदिर कहाँ स्थित है?

यह मंदिर भारत के असम राज्य में गुवाहाटी शहर के नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है।

माँ कामाख्या मंदिर की क्या विशेषताएं हैं?

यह मंदिर एक गुफा के अंदर स्थित है, जहाँ देवी का योनि रूप (योनि पीठ) एक प्राकृतिक चट्टान के रूप में पूजा जाता है।
यहाँ तंत्र साधना का विशेष महत्व है।
रक्त बलि की परंपरा आज भी जारी है, हालांकि अब यह कम हो रही है।
मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं।

माँ कामाख्या मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

आम्बुबाची (जून-जुलाई) और नवरात्रि (अप्रैल-मई और अक्टूबर-नवंबर) के त्योहारों के दौरान मंदिर में भारी भीड़ होती है। आप इन त्योहारों के अलावा भी मंदिर दर्शन कर सकते हैं।

माँ कामाख्या मंदिर में क्या-क्या अनुष्ठान किए जाते हैं?

बलिदान: रक्त बलि की परंपरा आज भी जारी है, हालांकि अब यह कम हो रही है।
तंत्र साधना: तंत्र साधना का विशेष महत्व है और यहाँ कई तांत्रिक साधु निवास करते हैं।
आरती: सुबह और शाम को देवी की आरती की जाती है।
भोग: देवी को भोग लगाया जाता है।

क्या विदेशी पर्यटक माँ कामाख्या मंदिर जा सकते हैं?

हां, विदेशी पर्यटक भी माँ कामाख्या मंदिर जा सकते हैं। हालाँकि, मंदिर की कुछ खास पूजाओं या अनुष्ठानों में शामिल होने के लिए पाबंदियां हो सकती हैं।

क्या माँ कामाख्या मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति है?

नहीं, मंदिर के गर्भगृह (जहां योनि पीठ स्थित है) के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। मंदिर परिसर के अन्य स्थानों पर फोटो लेने की अनुमति हो सकती है, लेकिन मंदिर प्रशासन के नियमों का पालन करना आवश्यक है।

माँ कामाख्या मंदिर में दर्शन के लिए कितना समय लग सकता है?

दर्शन के लिए लगने वाला समय भीड़-भाड़ पर निर्भर करता है। व्यस्त दिनों में आपको कई घंटे तक इंतजार करना पड़ सकता है। सामान्य दिनों में 1-2 घंटे लग सकते हैं।

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