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उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल

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उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल

“उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल” क्या आप उत्तराखंड की प्राकृतिक खूबसूरती का अनुभव करना चाहते हैं? देवभूमि उत्तराखंड में घूमने के लिए अनेक मनमोहक स्थान हैं। चाहे आप हिमालय की चोटियों पर ट्रेकिंग करना चाहते हों, या शांत झीलों के किनारे बैठकर प्रकृति का आनंद लेना चाहते हों, उत्तराखंड में आपके लिए सब कुछ है। इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के उन 20 सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों के बारे में बताएंगे जो आपके यात्रा अनुभव को यादगार बना देंगे।

1. ऋषिकेश पर्यटन स्थल:

हिमालय की तलहटी में गंगा नदी के किनारे बसा ऋषिकेश, उत्तराखंड का एक रत्नाकार है। ये शहर दो विरोधाभासी पहचानों के लिए जाना जाता है: विश्व योग राजधानी (World Yoga Capital) और साहसी रोमांच का गढ़ । आइए, ऋषिकेश की यात्रा पर निकलें और देखें कि ये अद्भुत स्थल आपको क्या प्रदान करता है।

शांति की तलाश

  • आश्रमों का आकर्षण : ऋषिकेश आध्यात्मिक साधना का केंद्र है। यहां सैकड़ों आश्रम विभिन्न योग शैलियों, ध्यान और आयुर्वेदिक उपचारों का प्रशिक्षण देते हैं। प्रसिद्ध आश्रमों में शामिल हैं – परमार्थ निकेतन, shivananda Ashram, और आनंद निकेतन आश्रम।
  • पवित्र गंगा आरती : शाम के समय गंगा नदी के किनारे होने वाली आरती का अनुभव अविस्मरणीय होता है। दीपों की जगमगाहट, भक्तिमय संगीत और मंत्रोच्चार का वातावरण आत्मा को शांत कर देता है। त्रिवेणी घाट और परमार्थ निकेतन आश्रम लोकप्रिय आरती स्थल हैं।
  • मंदिरों की धरोहर : ऋषिकेश प्राचीन मंदिरों का भी घर है। नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, तो त्रियंबकेश्वर मंदिर भगवान त्रिपुरारी को।

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रोमांच का जुनून

  • रिवर राफ्टिंग का रोमांच : ऋषिकेश को भारत की रिवर राफ्टिंग राजधानी (River Rafting Capital of India) भी कहा जाता है। गंगा नदी की रफ़्तार और रैपिड्स के बीच रोमांचक सफर का आनंद लें।
  • क्लिफ जंपिंग का साहस : ऋषिकेश क्लिफ जंपिंग के शौकीनों के बीच भी लोकप्रिय है। ऊंचाई से कूदकर गंगा की शीतलता का अनुभव करें। लेकिन, सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए ही इस गतिविधि को करें।
  • बंजी जंपिंग का उत्साह : यदि आप वाकई साहसी हैं, तो ऋषिकेश में बंजी जंपिंग का भी विकल्प मौजूद है। ऊंचाई से छलांग लगाकर रोमांच का अनुभव करें।
  • ट्रेकिंग ट्रेल्स की खूबसूरती : ऋषिकेश के आसपास कई खूबसूरत ट्रेकिंग ट्रेल्स हैं। गंगा किनारे के ट्रेक से लेकर कुंजापुरा ट्रेक तक, प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने के लिए ये ट्रेल्स बेहतरीन हैं।

ऋषिकेश घूमने का सर्वोत्तम समय

ऋषिकेश घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, जो योग और बाहरी गतिविधियों के लिए आदर्श है।

ऋषिकेश कैसे पहुंचें

ऋषिकेश निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 80 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी या बस द्वारा ऋषिकेश पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन भी ऋषिकेश में ही स्थित है।

ऋषिकेश में खाने का लज़ीज़ सफर

ऋषिकेश मुख्य रूप से सात्विक भोजन पर बल देता है, जो शाकाहारी और संतुलित आहार होता है। मगर, इसका मतलब ये नहीं कि खाने के विकल्प सीमित हैं।

  • स्थानीय व्यंजन : कैंपा (आलू और मटर से बनी करी), राजमा चावल, आलू पुरी, और पहाड़ी सब्जियों के व्यंजन ऋषिकेश के लोकप्रिय स्थानीय स्वाद हैं।
  • कैफे कल्चर : ऋषिकेश में कई अंतर्राष्ट्रीय कैफे हैं, जो स्वादिष्ट कॉफी, सैंडविच, पिज्जा और पास्ता जैसे व्यंजन परोसते हैं।
  • फूड स्ट्रीट्स : स्वामी विवेकानंद चौक के पास मौजूद लेमन चौक क्षेत्र में स्ट्रीट फूड का लुत्फ़ उठाएं। चटपटे समोसे, चाउमीन, और फ्रेश फ्रूट जूस का मज़ा लें।

ऋषिकेश में खरीदारी

ऋषिकेश में खरीदारी का अनुभव अद्वितीय है।

  • हस्तशिल्प की खूबसूरती : राम झूला और लक्ष्मण झूला के पास बाजारों में आप हस्तशिल्प की खरीदारी कर सकते हैं। मूर्तियां, रुद्राक्ष मालाएं, पश्मीना शॉल, और तिब्बती गायन के बर्तन लोकप्रिय हैं।
  • आयुर्वेदिक उपचार : आयुर्वेदिक दवाओं और जड़ी-बूटियों की दुकानें भी ऋषिकेश में भरपूर हैं।
  • किताबों की दुकानें : आध्यात्मिकता और योग से जुड़ी किताबों की दुकानें ऋषिकेश में प्रचलित हैं।

ऋषिकेश में ठहरने के विकल्प

आपके बजट के अनुसार ऋषिकेश में ठहरने के कई विकल्प मौजूद हैं।

  • शांत आश्रम : कई आश्रम कम बजट में सादा आवास और शांत वातावरण प्रदान करते हैं।
  • आरामदेह गेस्टहाउस : ऋषिकेश में कई किफायती गेस्टहाउस हैं, जो आरामदायक रहने की सुविधा देते हैं।
  • नदी किनारे के रिसॉर्ट : लक्जरी का अनुभव लेने के लिए आप गंगा नदी के किनारे स्थित रिसॉर्ट्स में ठहर सकते हैं।

ऋषिकेश घूमने के लिए सुझाव

  • हल्के और सूती कपड़े लाएं।
  • मानसून के लिए वाटरप्रूफ जूते और जैकेट साथ रखें।
  • सर्दियों में गर्म कपड़े लाना न भूलें।
  • सनस्क्रीन और टोपी का प्रयोग करें।
  • नदी किनारे सावधानी बरतें।
  • सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें।
  • स्थानीय दुकानों से ही खरीदारी करें।

ऋषिकेश आध्यात्मिकता और रोमांच का एक अनूठा संगम है। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और इस खूबसूरत शहर के आकर्षण का अनुभव करें।

2. चोपता : उत्तराखंड का मिनी स्विट्जरलैंड

उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल

उत्तराखंड की खूबसूरती अपरंपार है। हिमालय की तलहटियों में बसा चोपता ऐसा ही एक रमणीय स्थल है, जिसे “मिनी स्विट्जरलैंड” के नाम से भी जाना जाता है। समुद्र तल से 2680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये हिल स्टेशन अपनी मनमोहक घाटियों, घने जंगलों और बर्फ से ढके पर्वतमालाओं के लिए प्रसिद्ध है।

चोपता घूमने का सही समय

चोपता घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से अप्रैल और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, आसमान साफ होता है और हिमालय की चोटियां अपनी पूरी भव्यता में दिखाई देती हैं। मानसून (जुलाई-अगस्त) के दौरान भूस्खलन का खतरा रहता है, इसलिए इस समय यात्रा करने से बचें। सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) में यहां काफी बर्फबारी होती है, जिससे कुछ रास्ते बंद हो सकते हैं।

चोपता कैसे पहुंचें

चोपता तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के किसी बड़े शहर, जैसे देहरादून या ऋषिकेश पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा चोपता पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो लगभग 190 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से आप टैक्सी या बस द्वारा चोपता पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : ऋषिकेश या देहरादून से चोपता तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

चोपता में घूमने के लिए खास स्थल

चोपता घूमने का अनुभव अविस्मरणीय बनाने के लिए इन खास स्थलों की सैर करें:

  • तुंगनाथ मंदिर : दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर (3680 मीटर)। यह मंदिर पंच केदारों में से तीसरा केदार माना जाता है।
  • चंद्रशिला (Chandrashila Peak): तुंगनाथ मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये चोटी त्रिशूल चोटी के शानदार दृश्य प्रदान करती है।
  • देवरिया ताल : घने जंगलों के बीच स्थित ये खूबसूरत झील ट्रैकिंग और प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
  • उत्तराखंड का औली स्की रिसॉर्ट : चोपता से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित औली स्की रिसॉर्ट सर्दियों में स्कीइंग का आनंद लेने के लिए प्रसिद्ध है।
  • मुकु गांव ): चोपता से 4 किलोमीटर दूर स्थित ये गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।

चोपता में रोमांचक गतिविधियां

चोपता सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य का ही नहीं, बल्कि रोमांचक गतिविधियों का भी केंद्र है।

  • ट्रेकिंग (Trekking): चोपता आसपास कई खूबसूरत ट्रेकिंग ट्रेल्स हैं, जैसे चंद्रशिला ट्रैक, देवरिया ताल ट्रैक और तुंगनाथ ट्रैक।

चोपता में रहने का प्रबंध

चोपता में विभिन्न प्रकार के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जो आपके बजट के अनुसार चुने जा सकते हैं।

  • सरकारी गेस्ट हाउस : सरल और किफायती आवास के लिए आप सरकारी गेस्ट हाउस में रुक सकते हैं।
  • होटल और रिसॉर्ट : चोपता में कुछ होटल और रिसॉर्ट भी मौजूद हैं, जो आरामदायक रहने की सुविधा और खूबसूरत दृश्य प्रदान करते हैं।
  • टेंट हाउस: प्रकृति के बीच रहने का अनुभव लेने के लिए टेंट हाउस का विकल्प चुन सकते हैं।

चोपता घूमने का बजट

चोपता घूमने का बजट आपके ठहरने, खाने, परिवहन और गतिविधियों पर निर्भर करता है।

  • बजट यात्रा : ₹1,500 से ₹2,000 प्रतिदिन के खर्च में आप सरल आवास, स्थानीय भोजन और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • मध्यम यात्रा : ₹3,000 से ₹4,000 प्रतिदिन के खर्च में आप आरामदायक होटल, रेस्टोरेंट भोजन और निजी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
  • लक्जरी यात्रा: ₹5,000 या उससे अधिक प्रतिदिन के खर्च में आप लक्जरी रिसॉर्ट में रुक सकते हैं, बेहतरीन भोजन का आनंद ले सकते हैं और निजी वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

चोपता घूमने के लिए सुझाव

  • गर्मियों में भी हल्के ऊनी कपड़े साथ लाएं, क्योंकि रातें ठंडी हो सकती हैं।
  • ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त जूते पहनें।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • स्थानीय दुकानों से ही खरीदारी करें।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के नज़ारे देखने का मौका न चूकें।

चोपता की मनमोहक सुंदरता, रोमांचक गतिविधियां और शांत वातावरण आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस खूबसूरत “मिनी स्विट्जरलैंड” के आकर्षण का अनुभव करें।

चोपता में ठहरने की लागत कितनी है?

चोपता में रहने की व्यवस्था काफी किफायती है। आप गेस्टहाउस में ₹500 से ₹1,000 प्रति रात, बजट होटलों में ₹1,000 से ₹2,000 प्रति रात और लक्जरी कॉटेज में ₹2,000 से ₹5,000 प्रति रात के बीच रह सकते हैं।

चोपता यात्रा के लिए कितना बजट बनाना चाहिए?

चोपता यात्रा का बजट आपकी यात्रा की अवधि, रहने की व्यवस्था, भोजन, गतिविधियों और खरीदारी पर निर्भर करता है। एक किफायती यात्रा के लिए आप ₹2,000 से ₹3,000 प्रति दिन का बजट बना सकते हैं। वहीं, अधिक आरामदायक अनुभव के लिए आपको प्रतिदिन ₹4,000 या उससे अधिक का बजट बनाना पड़ सकता है।

चोपता में भोजन की लागत कितनी है?

चोपता में भोजन काफी किफायती है। आप छोटे ढाबों में ₹100 से ₹200 प्रति भोजन और रेस्तरां में ₹200 से ₹500 प्रति भोजन खर्च कर सकते हैं।

चोपता में घूमने का खर्च कितना है?

चोपता में घूमने का खर्च आपके द्वारा चुनी गई गतिविधियों पर निर्भर करता है। यदि आप सिर्फ घूमना और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा। हालांकि, ट्रैकिंग, ट्रेकिंग, कैम्पिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आपको अलग से शुल्क देना पड़ सकता है।

चोपता यात्रा में पैसे बचाने के लिए क्या टिप्स हैं?

पीक सीजन से बचें: अप्रैल-जून और सितंबर-नवंबर चोपता का पीक सीजन है। इस दौरान कीमतें अधिक होती हैं। कम सीजन (जुलाई-अगस्त और दिसंबर- मार्च) में यात्रा करके आप पैसे बचा सकते हैं।
बजट आवास चुनें: लक्जरी होटलों के बजाय गेस्टहाउस या बजट होटलों में रहें।
स्थानीय भोजन का आनंद लें: महंगे रेस्तरां के बजाय छोटे ढाबों में खाएं।
सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें: यदि संभव हो, तो टैक्सी किराए पर लेने के बजाय टैक्सी या स्थानीय बसों का उपयोग करें।
अपना सामान साथ लाएं: चोपता में कुछ चीजें, जैसे गर्म कपड़े और ट्रेकिंग गियर, महंगी हो सकती हैं। यदि संभव हो, तो इन्हें अपने साथ लाएं।

चोपता में इंटरनेट की सुविधा कैसी है?

चोपता में दूर-दराज के स्थान होने के कारण, इंटरनेट कनेक्शन कुछ कमजोर हो सकता है। हालांकि, ज्यादातर होटलों और गेस्टहाउस में बुनियादी इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है। यदि आप मजबूत इंटरनेट कनेक्शन की तलाश में हैं, तो आपको निराशा हो सकती है।

चोपता में घूमने के लिए क्या जरूरी चीजें साथ ले जानी चाहिए?

गर्म कपड़े (जैकेट, स्वेटर, टोपी, दस्ताने)
ट्रेकिंग जूते
जलरोधी जूते (मानसून के दौरान यात्रा करने पर)
सनस्क्रीन और धूप का चश्मा
मॉइस्चराइजर और लिप बाम (हवा शुष्क हो सकती है)
दर्द निवारक दवाइयां
प्राथमिक चिकित्सा किट
कैमरा (अतिरिक्त बैटरी और मेमोरी कार्ड के साथ)
टॉर्च
पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी
व्यक्तिगत स्वच्छता का सामान

चोपता के आसपास घूमने के लिए कोई अन्य स्थान हैं?

चोपता के आसपास घूमने के लिए कई अन्य खूबसूरत स्थान हैं, जिनमें शामिल हैं:
औली: यह एक लोकप्रिय स्कीइंग गंतव्य है।
गोपेश्वर: यह भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
ऋषिकेश: यह योग और ध्यान के लिए विश्व प्रसिद्ध स्थान है।

3. धनौल्टी : शांत पहाड़ों और मनोरम दृश्यों का संगम

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में बसा धनौल्टी, Mussoorie की चहलकहल से दूर, शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का एक छिपा हुआ रत्न है। यह हिल स्टेशन समुद्र तल से लगभग 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और देवदार के घने जंगलों से घिरा हुआ है। धनौल्टी उन लोगों के लिए एक आदर्श गंतव्य है, जो शोर-शराबा से दूर प्रकृति की गोद में सुकून के कुछ पल बिताना चाहते हैं।

धनौल्टी घूमने का सही समय

धनौल्टी घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, जो घूमने-फिरने और बाहरी गतिविधियों के लिए उपयुक्त होता है।

  • गर्मियां : गर्मियों में (अप्रैल-जून) मौसम सुखद रहता है। हल्के गर्म कपड़े साथ लाएं।
  • मानसून : मानसून (जुलाई-अगस्त) के दौरान बारिश हो सकती है, जिससे भूस्खलन का खतरा रहता है।
  • सर्दियां : सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) में धनौल्टी ठंडा हो जाता है। ऊनी कपड़े, टोपी और दस्ताने साथ लाना न भूलें। इस दौरान आप बर्फबारी का भी आनंद ले सकते हैं।

धनौल्टी कैसे पहुंचें

धनौल्टी तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के किसी बड़े शहर, जैसे देहरादून या ऋषिकेश पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा धनौल्टी पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन भी देहरादून में ही है। देहरादून से आप टैक्सी या बस द्वारा धनौल्टी पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : देहरादून या ऋषिकेश से धनौल्टी तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

धनौल्टी में घूमने के लिए खास स्थल

धनौल्टी घूमने का आनंद लेने के लिए इन खास स्थलों की सैर जरूर करें:

  • एप्पल गार्डन : सेब के बागों के बीच टहलते हुए प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें।
  • ईको पार्क : प्रकृति प्रेमियों के लिए यह पार्क एक बेहतरीन विकल्प है। यहां आप वनस्पति और जीव-जंतुओं की विविधता देख सकते हैं।
  • सुरकंडा देवी मंदिर : मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। ये मंदिर धनौल्टी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां से शानदार पहाड़ी दृश्य दिखाई देते हैं।
  • कैंपटी फॉल : धनौल्टी से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित ये खूबसूरत झरना पिकनिक मनाने के लिए एक आदर्श स्थान है।
  • देवगढ़ किला : 16वीं शताब्दी का ये किला ऐतिहासिक धरोहर है। किले के अंदर खूबसूरत भित्ति चित्र और मूर्तियां देखी जा सकती हैं।

धनौल्टी में रोमांचक गतिविधियां

धनौल्टी शांत वातावरण के साथ-साथ रोमांचक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है।

  • हॉर्स राइडिंग : घोड़ों पर सवार होकर खूबसूरत पहाड़ियों का सफर करें।
  • गुब्बारे की सैर : धनौल्टी में गुब्बारे की सैर का रोमांचक अनुभव ले सकते हैं और हवा से मनमोहने दृश्यों का आनंद उठा सकते हैं (मौसमीय रूप से उपलब्ध)।
  • जिपलाइन : रोमांच पसंद करते हैं, तो जिपलाइन का मज़ा जरूर लें। ऊंचाई से रफ्तार भरती हुई जिपलाइन पर एक यादगार अनुभव होगा।
  • पैराग्लाइडिंग : हवा में उड़ने का सपना पूरा करें। पैराग्लाइडिंग के जरिए पहाड़ों के बीच उड़ान भरना रोमांचकारी है (कुशल प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें)।

धनौल्टी में रहने का प्रबंध

धनौल्टी में विभिन्न प्रकार के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं।

  • होटल और रिसॉर्ट: आरामदायक होटल और रिसॉर्ट आपको शानदार दृश्यों और बेहतरीन सुविधाएं प्रदान करते हैं।
  • गेस्ट हाउस : किफायती गेस्ट हाउस में ठहरना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
  • कॉटेज : प्रकृति के बीच रहने का अनुभव लेने के लिए आप आरामदायक कॉटेज चुन सकते हैं।

धनौल्टी घूमने का बजट

धनौल्टी घूमने का बजट आपके ठहरने, खाने, परिवहन और गतिविधियों पर निर्भर करता है।

  • बजट यात्रा : ₹1,500 से ₹2,000 प्रतिदिन के खर्च में आप सरल आवास, स्थानीय भोजन और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • मध्यम यात्रा: ₹3,000 से ₹4,000 प्रतिदिन के खर्च में आप आरामदायक होटल, रेस्टोरेंट भोजन और निजी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
  • लक्जरी यात्रा : ₹5,000 या उससे अधिक प्रतिदिन के खर्च में आप लक्जरी रिसॉर्ट में रुक सकते हैं, बेहतरीन भोजन का आनंद ले सकते हैं और निजी वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

धनौल्टी घूमने के लिए सुझाव

  • धनौल्टी में तापमान अक्सर परिवर्तनशील रहता है, इसलिए हल्के गर्म कपड़े और रेनकोट साथ लाएं।
  • ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त जूते पहनें।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • स्थानीय दुकानों से खरीदारी कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दें।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के नज़ारे देखने का मौका न चूकें।

धनौल्टी की शांत सुंदरता, रोमांचक गतिविधियां और दिलचस्प दर्शनीय स्थल आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस खूबसूरत हिल स्टेशन में प्रकृति की गोद में कुछ सुखद पल बिताएं।

4. केदारनाथ: आस्था का धाम, प्रकृति का सौंदर्य

हिमालय की पवित्र चोटियों के बीच बसा केदारनाथ, उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना भी है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक, केदारनाथ मंदिर, श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक आस्था का केंद्र है। ऊंचे पहाड़ों, चमकते ग्लेशियरों और पवित्र मंदिर के संगम से निर्मित ये स्थान आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सुंदरता दोनों का अनुभव प्रदान करता है।

केदारनाथ मंदिर का महत्व

केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। हिंदू धर्म में, ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव उन्हें दर्शन देने के लिए एक बैल के रूप में प्रकट हुए और अंततः भूमि में समा गए। उनका धड़ केदारनाथ में प्रकट हुआ, इसलिए इस स्थान को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है।

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला

केदारनाथ मंदिर का निर्माण ग्रे रंग के विशाल पत्थरों से किया गया है। मंदिर पिरामिडनुमा आकार का है और इसकी छत चपटी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक विशाल नंदी (Nandi – भगवान शिव का वाहन) की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है।

केदारनाथ की यात्रा का सबसे अच्छा समय

केदारनाथ की यात्रा का सबसे अच्छा समय अप्रैल (अक्षय तृतीया) से नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा) के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है और यात्रा करना आसान होता है। सर्दियों में भारी snowfall (snowfall – हिमपात) के कारण मंदिर का प्रवेश द्वार बंद कर दिया जाता है। मानसून के दौरान (जुलाई-अगस्त) में भी भूस्खलन का खतरा रहता है, इसलिए यात्रा करने से बचना चाहिए।

केदारनाथ कैसे पहुंचें

केदारनाथ तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश या देहरादून जैसे किसी बड़े उत्तराखंड शहर तक पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा गौरीकुंड (Kedarnath का nearest road head) पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो लगभग 190 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से आप गौरीकुंड तक टैक्सी या बस ले सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : गौरीकुंड तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। इस दूरी को पैदल या पालकी द्वारा तय किया जा सकता है। हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।

केदारनाथ में दर्शनीय स्थल

केदारनाथ की यात्रा के दौरान आप इन दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं:

वासुकी ताल

केदारनाथ मंदिर के पास स्थित ये खूबसूरत झील भगवान वासुकि को समर्पित है.

शंकराचार्य समाधि

केदारनाथ मंदिर के पास स्थित शंकराचार्य समाधि हिंदू धर्म के महान दार्शनिक शंकराचार्य को समर्पित एक स्मारक है। ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में केदारनाथ का जीर्णोद्धार करवाया था।

गुप्तकाशी

गौरीकुंड से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुप्तकाशी, सर्दियों में भगवान शिव की डोली यहीं विराजमान रहती है। केदारनाथ मंदिर बंद होने के दौरान भगवान शिव की पूजा गुप्तकाशी में ही की जाती है।

मंदाकिनी नदी

केदारनाथ मंदिर के पास बहने वाली मंदाकिनी नदी को पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु मंदिर जाने से पहले इस नदी में स्नान करते हैं।

केदारनाथ घाटी की वनस्पति और जीव

केदारनाथ घाटी में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जिनमें देवदार, बुरांश और भोजपत्र शामिल हैं। यहां आप हिमालयी थार, भेडिया और मोनाल पक्षी जैसे जंगली जीवों को भी देख सकते हैं (दूर से ही देखने का प्रयास करें, वन्यजीवों को परेशान न करें)।

केदारनाथ यात्रा के लिए टिप्स
  • केदारनाथ की यात्रा करने से पहले अपनी शारीरिक फिटनेस का ध्यान रखें।
  • ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां ठंड पड़ती है, इसलिए गर्म कपड़े साथ लाएं।
  • ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त जूते पहनें।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • यात्रा के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी साथ रखें।
  • केदारनाथ धाम में मोबाइल नेटवर्क सीमित है, इस बात का ध्यान रखें।
  • यात्रा से पहले मौसम की जानकारी प्राप्त कर लें।
  • केदारनाथ मंदिर में दर्शन के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराना उचित होगा।

केदारनाथ की यात्रा न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है, बल्कि हिमालय की मनमोहक सुंदरता का भी दीदार कराती है। यह यात्रा आपको जीवन भर याद रहेगी।

5. नैनीताल: पहाड़ों की रानी का आकर्षण

उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल

उत्तराखंड के खूबसूरत कुमाऊं क्षेत्र में स्थित नैनीताल, “पहाड़ों की रानी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह हिल स्टेशन अपनी मनमोहक झीलों, हरे-भरे जंगलों और बर्फ से ढके पर्वतमालाओं के लिए जाना जाता है। नैनीताल उन लोगों के लिए एक आदर्श गंतव्य है, जो शहरी जीवन की चहलकहल से दूर प्रकृति की शरण में कुछ सुकून के पल बिताना चाहते हैं।

नैनीताल घूमने का सही समय

नैनीताल घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, आसमान साफ होता है और हिमालय की चोटियां अपनी पूरी भव्यता में दिखाई देती हैं। मानसून (जुलाई-अगस्त) के दौरान भूस्खलन का खतरा रहता है, इसलिए इस समय यात्रा करने से बचें। सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) में यहां काफी बर्फबारी होती है, जिससे कुछ रास्ते बंद हो सकते हैं।

नैनीताल कैसे पहुंचें

नैनीताल तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के किसी बड़े शहर, जैसे देहरादून या ऋषिकेश पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा नैनीताल पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो लगभग 190 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से आप टैक्सी या बस द्वारा नैनीताल पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : ऋषिकेश या देहरादून से नैनीताल तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

नैनीताल में घूमने के लिए खास स्थल

नैनीताल घूमने का आनंद लेने के लिए इन खास स्थलों की सैर जरूर करें:

  • नानी झील : नैनीताल की खूबसूरती का प्रतीक ये झील बोटिंग, पैडलिंग और हॉर्स राइडिंग जैसी गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • टिफिन टॉप : नैनीताल का सबसे ऊंचा स्थान, जो हिमालय की लुभावनी पर्वतमाला का मनोरम दृश्य प्रदान करता है। आप रोपवे के जरिए टिफिन टॉप तक पहुंच सकते हैं।
  • नैना देवी मंदिर : माता नैना देवी को समर्पित ये प्राचीन मंदिर नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है।
  • गवर्नर हाउस : ब्रिटिश काल का ये भव्य भवन अब राज्यपाल का आवास है। इसकी वास्तुकला देखने लायक है।
  • हुकना चोटी : एडवेंचर प्रेमियों के लिए ये जगह पैराग्लाइडिंग का आनंद लेने के लिए बेहतरीन है।

नैनीताल में रहने का प्रबंध

नैनीताल में विभिन्न प्रकार के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जो आपके बजट के अनुसार चुने जा सकते हैं।

  • होटल और रिसॉर्ट: नैनीताल में कई शानदार होटल और रिसॉर्ट हैं, जो आपको आरामदायक stay (रहना) और खूबसूरत दृश्यों का आनंद प्रदान करते हैं।
  • गेस्ट हाउस : किफायती गेस्ट हाउस आपके ठहरने का एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
  • होटल बोट : नैनी झील पर तैरते हुए होटल बोट में रुकने का अनोखा अनुभव लें।

नैनीताल घूमने का बजट

नैनीताल घूमने का बजट आपके ठहरने, खाने, परिवहन और गतिविधियों पर निर्भर करता है।

  • बजट यात्रा: ₹1,500 से ₹2,000 प्रतिदिन के खर्च में आप सरल आवास, स्थानीय भोजन और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • मध्यम यात्रा : ₹3,000 से ₹4,000 प्रतिदिन के खर्च में आप आरामदायक होटल, रेस्टोरेंट भोजन और निजी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
  • लक्जरी यात्रा : ₹5,000 या उससे अधिक प्रतिदिन के खर्च में आप लक्जरी रिसॉर्ट में रुक सकते हैं, बेहतरीन भोजन का आनंद ले सकते हैं और निजी वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

नैनीताल घूमने के लिए सुझाव

  • नैनीताल में मौसम अक्सर बदलता रहता है, इसलिए हल्के गर्म कपड़े और रेनकोट साथ लाएं।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • नैनीताल में घूमने के लिए घुड़सवारी एक मजेदार विकल्प है।
  • स्थानीय दुकानों से खरीदारी कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दें।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के नज़ारे देखने का मौका न चूकें।

नैनीताल की मनमोहक सुंदरता, रोमांचक गतिविधियां और आकर्षक पर्यटन स्थल आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस रमणीय हिल स्टेशन में प्रकृति की गोद में कुछ यादगार पल बिताएं।

6. मसूरी: पहाड़ों की रानी का आलिंगन

उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियों में बसा मसूरी, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। इसे “पहाड़ों की रानी” के नाम से भी पुकारा जाता है। समुद्र तल से लगभग 2005 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये हिल स्टेशन शिमला की तरह ही चहल-पहल और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम प्रस्तुत करता है। गर्मी के मौसम में मैदानी इलाकों की तपिश से राहत पाने के लिए और सर्दियों में बर्फबारी का मज़ा लेने के लिए भी पर्यटक बड़ी संख्या में मसूरी आते हैं।

मसूरी घूमने का सही समय

मसूरी घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, घूमने-फिरने और बाहरी गतिविधियों के लिए उपयुक्त होता है।

  • गर्मियां : अप्रैल से जून के महीनों में गर्मी तो पड़ती है, लेकिन यह बहुत अधिक तेज नहीं होती। हल्के गर्म कपड़े साथ लाना न भूलें।
  • मानसून : जुलाई और अगस्त के दौरान बारिश हो सकती है, जिससे कभी-कभी भूस्खलन का खतरा रहता है।
  • सर्दियां : दिसंबर से फरवरी तक का समय सर्दियों का होता है। इस दौरान ठंड काफी बढ़ जाती है और ऊनी कपड़े, टोपी और दस्ताने साथ लाना जरूरी है। बर्फबारी का आनंद लेने के लिए आप इस समय मसूरी घूमने की योजना बना सकते हैं।

मसूरी कैसे पहुंचें

मसूरी तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको देहरादून जैसे किसी बड़े उत्तराखंड शहर तक पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा मसूरी पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन भी देहरादून में ही है। देहरादून से आप टैक्सी या बस द्वारा मसूरी पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : देहरादून से मसूरी तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

मसूरी में घूमने के लिए खास स्थल

मसूरी की सैर अधूरी रहती है, अगर आप इन खूबसूरत स्थलों को ना देखें:

  • मॉल रोड: मसूरी का दिल माना जाने वाला ये पैदल चलने वाला रास्ता खरीदारी, खाने-पीने और मनोरंजन का केंद्र है।
  • गन हिल : रोपवे के जरिए आप गन हिल तक पहुंच सकते हैं, जहां से हिमालय की लुभावनी पर्वतमाला का नज़ारा देखने लायक होता है।
  • कैम्पटी फॉल : मसूरी से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित ये खूबसूरत झरना पिकनिक मनाने के लिए एक आदर्श स्थान है।
  • लेक मिस्ट : ये कृत्रिम झील मसूरी में बोटिंग का आनंद लेने के लिए जानी जाती है।
  • मसूरी झील : ये प्राकृतिक झील शांत वातावरण का आनंद लेने के लिए एक अच्छी जगह है।

मसूरी में रोमांचक गतिविधियां

शांत वातावरण के साथ-साथ मसूरी रोमांचक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है।

  • रैपलिंग : रोमांच पसंद करने वालों के लिए रैपलिंग एक बेहतरीन विकल्प है। मसूरी में कुछ जगहों पर इसकी सुविधा उपलब्ध है।
  • पैराग्लाइडिंग : हवा में उड़ने का सपना पूरा करने के लिए आप मसूरी में पैराग्लाइडिंग का आनंद ले सकते हैं (कुशल प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें)।
  • माउंटेन बाइकिंग : पहाड़ों की कठिन चढ़ाईयों को पार करते हुए मसूरी की खूबसूरती को एक अलग नजरिए से निहारने का रोमांचकारी अनुभव लें।
  • जिपलाइन : ऊंचाई से रफ्तार भरती हुई जिपलाइन पर फिसलना (फिसलना – fislana) एक यादगार अनुभव हो सकता है।

मसूरी में खाने का लुत्फ

मसूरी की खूबसूरती के साथ-साथ यहां का लज़ीज भोजन भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।

  • गढ़वाली व्यंजन: मसूरी में आपको उत्तराखंड के पारंपरिक गढ़वाली व्यंजन, जैसे (Kappi – एक प्रकार का दलिया), भट्ट की चटनी (Bhatt ki Chutney) और सिडू (Siddu) का स्वाद जरूर लेना चाहिए।
  • टिब्बती व्यंजन : मसूरी में तिब्बती समुदाय की अच्छी खासी संख्या निवास करती है। यहां आपको मोमोज, थुकपा और थेंगमो जैसी स्वादिष्ट तिब्बती व्यंजनों का आनंद लेने का अवसर मिलेगा।
  • ब्रिटिश व्यंजन : मसूरी ब्रिटिश राज का एक प्रमुख हिल स्टेशन भी रहा है। यहां आज भी कुछ रेस्टोरेंट में आप ब्रिटिश व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं।

मसूरी में रहने का प्रबंध

मसूरी में ठहरने के लिए विभिन्न प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं, जो आपके बजट के अनुसार चुने जा सकते हैं।

  • होटल और रिसॉर्ट : मसूरी में कई शानदार होटल और रिसॉर्ट हैं, जो आपको आरामदायक stay (रहना) और खूबसूरत दृश्यों का आनंद प्रदान करते हैं।
  • गेस्ट हाउस : किफायती गेस्ट हाउस आपके ठहरने का एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
  • होटल कॉटेज : प्रकृति के बीच शांत वातावरण में रहने का अनुभव लेने के लिए आप होटल कॉटेज चुन सकते हैं।

मसूरी घूमने का बजट

मसूरी घूमने का बजट आपके ठहरने, खाने, परिवहन और गतिविधियों पर निर्भर करता है।

  • बजट यात्रा: ₹1,500 से ₹2,000 प्रतिदिन के खर्च में आप सरल आवास, स्थानीय भोजन और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • मध्यम यात्रा : ₹3,000 से ₹4,000 प्रतिदिन के खर्च में आप आरामदायक होटल, रेस्टोरेंट भोजन और निजी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
  • लक्जरी यात्रा: ₹5,000 या उससे अधिक प्रतिदिन के खर्च में आप लक्जरी रिसॉर्ट में रुक सकते हैं, बेहतरीन भोजन का आनंद ले सकते हैं और निजी वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

मसूरी की मनमोहक सुंदरता, रोमांचक गतिविधियां और स्वादिष्ट भोजन आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस रमणीय हिल स्टेशन में प्रकृति की गोद में कुछ यादगार पल बिताएं। मसूरी आएं और पहाड़ों की रानी के आलिंगन का आनंद लें!

7. बद्रीनाथ: आस्था का धाम, प्राकृतिक सौंदर्य का संगम

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित बद्रीनाथ, हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच बसा एक धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना भी है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक, बद्रीनाथ मंदिर, लाखों श्रद्धालुओं के लिए अगाध आस्था का केंद्र है। ऊंचे पहाड़, चमकते ग्लेशियर और पवित्र मंदिर का संगम इस स्थान को आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव प्रदान करता है।

बद्रीनाथ मंदिर का महत्व

हिंदू धर्म में, ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव उन्हें दर्शन देने के लिए एक बैल के रूप में प्रकट हुए और अंततः भूमि में समा गए। उनका धड़ बद्रीनाथ में प्रकट हुआ, इसलिए इस स्थान को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर की वास्तुकला

बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण ग्रे रंग के विशाल पत्थरों से किया गया है। मंदिर पिरामिडनुमा आकार का है और इसकी छत चपटी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक विशाल नंदी (Nandi – भगवान शिव का वाहन) की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है।

बद्रीनाथ की यात्रा का सबसे अच्छा समय

बद्रीनाथ की यात्रा का सबसे अच्छा समय अप्रैल (अक्षय तृतीया) से नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा) के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है और यात्रा करना आसान होता है। सर्दियों में भारी snowfall के कारण मंदिर का प्रवेश द्वार बंद कर दिया जाता है। मानसून के दौरान (जुलाई-अगस्त) में भी भूस्खलन का खतरा रहता है, इसलिए यात्रा करने से बचना चाहिए।

बद्रीनाथ कैसे पहुंचें

बद्रीनाथ तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश या देहरादून जैसे किसी बड़े उत्तराखंड शहर तक पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा गौरीकुंड (Badrinath का nearest road head) पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो लगभग 190 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से आप टैक्सी या बस द्वारा गौरीकुंड पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : गौरीकुंड तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। गौरीकुंड से बद्रीनाथ मंदिर तक की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। इस दूरी को पैदल या पालकी द्वारा तय किया जा सकता है। हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।

बद्रीनाथ में दर्शनीय स्थल

बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान आप इन दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं:

  • वासुकी ताल : बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित ये खूबसूरत झील भगवान वासुकि को समर्पित है।
  • नार-पार्वत : बद्रीनाथ मंदिर के पीछे स्थित ये दो पर्वत श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान नारायण और उनके भाई नार यहां तपस्या करते थे।
  • माणा गांव : भारत का अंतिम गांव माना जाने वाला माणा गांव बद्रीनाथ से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है। माणा गांव की अपनी अनूठी संस्कृति और परंपराएं हैं।

8. आल्मोरा: पहाड़ों की रानी का मुकुट

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित आल्मोरा, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। इसे “पहाड़ों की रानी” (नैनीताल) का मुकुट भी कहा जाता है। 7000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित ये हिल स्टेशन हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।

यदि आप शांत वातावरण, मनोरम दृश्यों और सांस्कृतिक अनुभवों की तलाश में हैं, तो आल्मोरा आपके लिए एक आदर्श गंतव्य है।

आल्मोरा घूमने का सही समय

आल्मोरा घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, घूमने-फिरने और बाहरी गतिविधियों के लिए उपयुक्त होता है।

  • गर्मियां : अप्रैल से जून के महीनों में गर्मी तो पड़ती है, लेकिन मैदानी इलाकों की तुलना में काफी कम। हल्के गर्म कपड़े साथ लाना न भूलें।
  • मानसून : जुलाई और अगस्त के दौरान बारिश हो सकती है, जिससे कभी-कभी भूस्खलन का खतरा रहता है।
  • सर्दियां : दिसंबर से फरवरी तक का समय सर्दियों का होता है। सर्दियों में ठंड काफी बढ़ जाती है और ऊनी कपड़े, टोपी और दस्ताने साथ लाना जरूरी है। बर्फबारी का आनंद लेने के लिए आप इस समय आल्मोरा घूमने की योजना बना सकते हैं।

आल्मोरा कैसे पहुंचें

आल्मोरा तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको किसी बड़े उत्तराखंड शहर, जैसे हल्द्वानी या काठगोदाम, पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (हल्द्वानी) है, जो लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा आल्मोरा पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है, जो लगभग 88 किलोमीटर दूर है। काठगोदाम से आप टैक्सी या बस द्वारा आल्मोरा पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : हल्द्वानी या काठगोदाम से आल्मोरा तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आल्मोरा में घूमने के लिए खास स्थल

आल्मोरा की खूबसूरती को निहारने के लिए इन दर्शनीय स्थलों की सैर जरूर करें:

  • Kashtinath Temple : 8वीं शताब्दी में बना ये प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर की वास्तुकला और मूर्तिकला देखने लायक है।
  • स्वामी विवेकानंद का निवास स्थान: कैली नामक स्थान पर स्थित ये आश्रम स्वामी विवेकानंद के प्रवास का स्मारक है। आध्यात्मिक शांति का अनुभव लेने के लिए आप यहां जा सकते हैं।
  • Zero Point: आल्मोरा का सबसे ऊंचा स्थान माना जाने वाला जीरो पॉइंट हिमालय की लुभावनी पर्वतमाला का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। यहां दूरबीन की मदद से दूर के पहाड़ों को भी देखा जा सकता है। (ज़ीरो पॉइंट – Zero Point)
  • गोलू देवता का मंदिर : उत्तराखंड के लोक देवता गोलू देवता को समर्पित ये मंदिर आल्मोरा में दर्शनीय स्थल है।
  • सियालदेवी मंदिर : कुमाऊं क्षेत्र की कुलदेवी मानी जाने वाली सियालदेवी को समर्पित ये मंदिर आल्मोरा से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • चितई मंदिर : आल्मोरा से लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित ये मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है। मंदिर परिसर में प्राकृतिक झरना भी है।
  • राजभवन: ब्रिटिश राज के समय बना ये भव्य भवन अब राज्यपाल का आवास है। इसकी वास्तुकला देखने लायक है।

आल्मोरा में रोमांचक गतिविधियां

शांत वातावरण के साथ-साथ आल्मोरा रोमांचक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है।

  • ट्रेकिंग: हिमालय की तलहटी में स्थित आल्मोरा ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए एक आदर्श स्थान है। आप आसपास की पहाड़ियों, जैसे कत्यूर गधेरा (Katur Gadhera) और सोबतीया ताल (Sobtiya Tal) तक ट्रेकिंग का आनंद ले सकते हैं।
  • रैपलिंग : रोमांच पसंद करने वालों के लिए रैपलिंग एक बेहतरीन विकल्प है। आल्मोरा में कुछ जगहों पर इसकी सुविधा उपलब्ध है।
  • पैराग्लाइडिंग: हवा में उड़ने का सपना पूरा करने के लिए आप कुमाऊं के मनोरम दृश्यों का आनंद लेते हुए पैराग्लाइडिंग का अनुभव कर सकते हैं (कुशल प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें)।
  • बर्डवॉचिंग : आल्मोरा विभिन्न प्रकार के पक्षियों का घर है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यहां बर्डवॉचिंग एक शानदार अनुभव हो सकता है।

आल्मोरा में खाने का लुत्फ

आल्मोरा की यात्रा को यादगार बनाने के लिए यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद जरूर लें:

  • कुमाऊंनी व्यंजन आल्मोरा में आपको उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के पारंपरिक व्यंजन, जैसे भट्ट की चटनी (Bhatt ki Chutney), अंडा भुर्जी (Anda Bhurji – अंडे से बना व्यंजन), कैंच (Kainch – एक प्रकार की दाल) और सिडू (Siddu) का स्वाद जरूर लेना चाहिए।
  • गढ़वाली व्यंजन: कुछ रेस्टोरेंट में आपको गढ़वाली व्यंजन, जैसे (Kappi – एक प्रकार का दलिया) और आलू की चट्टी (Aloo ki Chatti) भी मिल सकते हैं।

आल्मोरा में रहने का प्रबंध

आल्मोरा में ठहरने के लिए विभिन्न प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं, जो आपके बजट के अनुसार चुने जा सकते हैं।

  • होटल और रिसॉर्ट : आल्मोरा में कई आरामदायक होटल और रिसॉर्ट हैं, जो आपको आरामदायक stay (रहना) और खूबसूरत दृश्यों का आनंद प्रदान करते हैं।
  • गेस्ट हाउस: किफायती गेस्ट हाउस आपके ठहरने का एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
  • होटल कॉटेज : प्रकृति के बीच शांत वातावरण में रहने का अनुभव लेने के लिए आप होटल कॉटेज चुन सकते हैं।

आल्मोरा में खरीदारी

आप अपनी यात्रा के यादगार के रूप में आल्मोरा से कुछ खास चीजें खरीद सकते हैं:

  • हस्तशिल्प : आल्मोरा उत्तराखंड के हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। आप यहां लकड़ी के खिलौने, ऊनी वस्त्र, मूर्तियां और पेंटिंग्स जैसी हस्तशिल्प की खरीदारी कर सकते हैं।
  • Ringal Bamboo: हिमालय की तलहटी में उगने वाले रिंगाल बांस से बनी टोकरियां, चटाईयां और अन्य सामान आल्मोरा में मिलते हैं। ये सामान मजबूत और सुंदर होते हैं।
  • जड़ी-बूटी और मसाले: आयुर्वेदिक दवाओं और मसालों के लिए इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटी आल्मोरा में आसानी से मिलती हैं।
  • बाल मिठाई : आलबुखारे से बनी ये पारंपरिक मिठाई आल्मोरा की खासियत है। आप इसे अपने प्रियजनों के लिए उपहार के रूप में भी ले जा सकते हैं।

आल्मोरा की संस्कृति

आल्मोरा की संस्कृति कुमाऊं क्षेत्र की समृद्ध परंपराओं को दर्शाती है। यहां के लोक नृत्य, संगीत और कला शैलियाँ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

  • लोक नृत्य: छपेली, बैंडपानी और नौला जैसी लोक नृत्य आल्मोरा की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
  • संगीत : कुमाऊंनी लोक संगीत, जिसमें ढोल, रणसिंघा और हुड़का जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है, आल्मोरा की संस्कृति में खास स्थान रखता है।
  • कला : आल्मोरा चित्रकला (Almora Paintings) नामक एक अनूठी शैली के लिए जाना जाता है। इस शैलী में प्रकृति, धर्म और रोजमर्रा के जीवन के चित्र बनाए जाते हैं।

आल्मोरा घूमने के लिए टिप्स

  • आल्मोरा घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनें, क्योंकि यहां घूमने में थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ सकती है।
  • ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े साथ लाएं, खासकर अगर आप सर्दियों में यात्रा कर रहे हैं।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • स्थानीय दुकानों से खरीदारी करें और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दें।
  • मोबाइल नेटवर्क सीमित हो सकता है, इसलिए जरूरी बातचीत पहले से कर लें।

पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले आल्मोरा की मनमोहक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और रोमांचक गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस खूबसूरत हिल स्टेशन में प्रकृति की गोद में कुछ यादगार पल बिताएं।

9. जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान: वन्य जीवों का स्वर्ग

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड का एक प्रमुख प्राकृतिक आकर्षण है, जो हिमालय के प्रसिद्ध कोर्बेट गाँव के आसपास स्थित है। यहाँ के घने वन, विविधतापूर्ण जंगली जीवन, और शांतिपूर्ण पर्वतीय परिदृश्यों का अनुभव करने के लिए पर्यटक आते हैं।

उत्तराखंड में घूमने के लिए सर्वोत्तम 20 पर्यटन स्थल

उत्तराखंड राज्य में स्थित, जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान वन्य जीव प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। यह भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव भी रखता है। बाघों के लिए प्रसिद्ध यह राष्ट्रीय उद्यान अपनी समृद्ध जैव विविधता, खूबसूरत परिदृश्य और रोमांचक वन सफारी के लिए जाना जाता है।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1936 में हुई थी। इसका नाम प्रसिद्ध शिकारी और संरक्षणवादी जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस क्षेत्र में बाघों के शिकार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह बाघों के संरक्षण के लिए शुरू की गई “प्रोजेक्ट टाइगर” पहल का पहला अभयारण्य भी बना।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का भौगोलिक स्वरूप

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान लगभग 520 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह हिमालय की तलहटी में स्थित है और इसकी ऊंचाई 1300 से 4000 फीट तक है। यहां साल के पेड़ों से घने जंगल, घास के मैदान, नदियां और दलदल पाए जाते हैं।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाने वाले जीव

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान बाघों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। यहां आप रॉयल बंगाल टाइगर को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, यहां एशियाई हाथी, तेंदुआ, जंगली सुअर, हिरण, चीतल, सांभर, गौर, लंगूर, गेंडा और घड़ियाल जैसे कई अन्य वन्यजीव भी पाए जाते हैं।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में पक्षी जीवन

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक स्वर्ग है। यहां लगभग 650 से अधिक प्रजातियां के पक्षी पाए जाते हैं। कुछ प्रसिद्ध पक्षियों में मोर, कोयल, गरुड़, हिमालयन ग्रिफॉन, हॉर्नबिल, किंगफिशर और स्नेक ईगल शामिल हैं।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान घूमने का सबसे अच्छा समय

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है और वन्यजीवों को देखने की संभावना भी अधिक होती है।

  • गर्मियां: मार्च से जून के महीनों में गर्मी पड़ती है, हालांकि मैदानी इलाकों की तुलना में कम।
  • मानसून : जुलाई और अगस्त के दौरान बारिश हो सकती है, जिससे जंगल में जाना मुश्किल हो सकता है।
  • सर्दियां : सर्दियों में (दिसंबर से फरवरी) ठंड पड़ती है।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान कैसे पहुंचे

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको किसी बड़े उत्तराखंड शहर, जैसे रामनगर या रामपुर, पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा देहरादून ( Jolly Grant Airport) है, जो लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा रामनगर पहुंच सकते हैं। वहां से आप राष्ट्रीय उद्यान तक जीप किराए पर ले सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर में ही स्थित है। आप ट्रेन द्वारा रामनगर पहुंच कर वहां से राष्ट्रीय उद्यान तक जीप किराए पर ले सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: सड़क मार्ग से भी आप जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान तक पहुंच सकते हैं। रामपुर और रामनगर दोनों शहर राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़े हुए हैं। आप अपनी कार से या राज्य परिवहन की बसों द्वारा राष्ट्रीय उद्यान तक पहुंच सकते हैं।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में घूमने के लिए विभिन्न गतिविधियां

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवों को देखने के अलावा आप कई अन्य रोमांचक गतिविधियों का भी आनंद ले सकते हैं:

  • जंगल सफारी : जीप या हाथी की पीठ पर सवार होकर जंगल सफारी का रोमांचकारी अनुभव लें।
  • बर्डवॉचिंग : पक्षी प्रेमियों के लिए पार्क में बर्डवॉचिंग एक शानदार अनुभव हो सकता है।
  • नेचर वॉक : प्रकृति प्रेमियों के लिए राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में पैदल प्रकृति भ्रमण का आयोजन किया जाता है।
  • मछली पकड़ना : रामगंगा नदी में मछली पकड़ने का लुत्फ उठाया जा सकता है (नियमों का पालन जरूरी)।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के आसपास घूमने के लिए स्थान

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान घूमने के साथ-साथ आप आसपास के इन दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं:

  • कोर्बेट फॉल (: कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के निकट स्थित ये खूबसूरत झरने पिकनिक मनाने के लिए आदर्श स्थान हैं।
  • गढ़वाल भवन : कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश द्वार के पास स्थित गढ़वाल भवन उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास को दर्शाता है।
  • टांडन आश्रम: कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित टांडन आश्रम महात्मा गांधी से जुड़ा हुआ है।
  • कोसी बैराज: रामनगर से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित कोसी बैराज पिकनिक मनाने और नदी के किनारे सुखद समय बिताने के लिए एक अच्छी जगह है।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान घूमने जाते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • राष्ट्रीय उद्यान घूमने जाने से पहले वन विभाग से अनुमति जरूर लें।
  • पार्क के अंदर शोर न करें और वन्यजीवों को परेशान न करें।
  • प्लास्टिक का प्रयोग कम से कम करें और जैविक रूप से विघटित होने वाले पदार्थ ही लाएं।
  • पार्क के अंदर धूम्रपान वर्जित है।
  • जंगल में निर्धारित रास्तों से ही चलें।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमी के लिए एक स्वर्ग है।

10. रानीखेत: पहाड़ों की रानी का मुकुट

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित रानीखेत, अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। इसे “पहाड़ों की रानी” (नैनीताल) का मुकुट भी कहा जाता है। 7000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित ये हिल स्टेशन हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।

यदि आप पहाड़ों की खामोशी, लुभावने दृश्यों और आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में हैं, तो रानीखेत आपके लिए एक आदर्श गंतव्य है।

रानीखेत घूमने का सही समय

रानीखेत घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, घूमने-फिरने और बाहरी गतिविधियों के लिए उपयुक्त होता है।

  • गर्मियां : अप्रैल से जून के महीनों में गर्मी पड़ती है, लेकिन मैदानी इलाकों की तुलना में काफी कम। हल्के गर्म कपड़े साथ लाना न भूलें।
  • मानसून : जुलाई और अगस्त के दौरान बारिश हो सकती है, जिससे कभी-कभी भूस्खलन का खतरा रहता है।
  • सर्दियां : दिसंबर से फरवरी तक का समय सर्दियों का होता है। सर्दियों में ठंड काफी बढ़ जाती है और ऊनी कपड़े, टोपी और दस्ताने साथ लाना जरूरी है। बर्फबारी का आनंद लेने के लिए आप इस समय रानीखेत घूमने की योजना बना सकते हैं।

रानीखेत कैसे पहुंचे

रानीखेत तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको किसी बड़े उत्तराखंड शहर, जैसे हल्द्वानी या काठगोदाम, पहुंचना होगा।

  • हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (हल्द्वानी) है, जो लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा रानीखेत पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है, जो लगभग 88 किलोमीटर दूर है। काठगोदाम से आप टैक्सी या बस द्वारा रानीखेत पहुंच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग : हल्द्वानी या काठगोदाम से रानीखेत तक सड़क मार्ग सुगम है। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सरकारी बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रानीखेत में घूमने के लिए खास स्थल

रानीखेत की खूबसूरती को निहारने के लिए इन दर्शनीय स्थलों की सैर जरूर करें:

  • गोल्फ कोर्स (Golf Course): रानीखेत में स्थित यह 9-होल वाला गोल्फ कोर्स हिमालय की तलहटी में हैं, जो इसे देश के सबसे खूबसूरत गोल्फ कोर्स में से एक बनाता है।
  • चौबटिया गार्डन (Chaubatia Gardens): फलों के पेड़ों से लदे ये टेरेसदार बगीचे रानीखेत से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित हैं। यहां से हिमालय की चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
  • कोसी बैराज (Koshi Barrage): कोसी नदी पर बना ये बैराज पिकनिक मनाने और नदी के किनारे सुखद समय बिताने के लिए एक अच्छी जगह है।

रानीखेत के आसपास के दर्शनीय स्थल

रानीखेत घूमने के साथ-साथ आप आसपास के इन दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं:

  • नैनीताल (Nainital): रानीखेत से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित “पहाड़ों की रानी” नैनीताल, अपनी खूबसूरत झील और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
  • अल्मोड़ा (Almora): रानीखेत से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित अल्मोड़ा, कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रमुख शहर है। यहां के मंदिर, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
  • काठगोदाम (Kathgodam): रानीखेत का निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम स्थित है। यहां से आप टॉय ट्रेन में सवार होकर हल्द्वानी तक का रोमांचक सफर तय कर सकते हैं।

रानीखेत में रोमांचक गतिविधियां

पहाड़ों की शांत वादियों के बीच बसा रानीखेत रोमांच पसंद करने वालों के लिए भी कई विकल्प प्रदान करता है:

  • ट्रेकिंग: हिमालय की तलहटी में स्थित रानीखेत ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए एक आदर्श स्थान है। आप आसपास की पहाड़ियों, जैसे कि किचौली peak (Kichaulipeak) और घरोड़ भट्ट (Gharodia Bhatt) तक ट्रेकिंग का आनंद ले सकते हैं।
  • रैपलिंग: रोमांच पसंद करने वालों के लिए रैपलिंग एक बेहतरीन विकल्प है। रानीखेत में कुछ जगहों पर इसकी सुविधा उपलब्ध है।
  • पैराग्लाइडिंग : हवा में उड़ने का सपना पूरा करने के लिए आप कुमाऊं के मनोरम दृश्यों का आनंद लेते हुए पैराग्लाइडिंग का अनुभव कर सकते हैं (कुशल प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें)।
  • जिपलाइन : रानीखेत में कुछ रिसॉर्ट्स में जिपलाइन की सुविधा भी उपलब्ध है। पेड़ों के बीच से गुजरने वाली इस रोमांचक राइड का लुत्फ उठा सकते हैं।

रानीखेत में खाने का लुत्फ

रानीखेत की खूबसूरती के साथ-साथ यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद भी आपकी यात्रा को यादगार बना देगा:

  • कुमाऊंनी व्यंजन (Kumaoni Cuisine): रानीखेत में आपको उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के पारंपरिक व्यंजन, जैसे भट्ट की चटनी (Bhatt ki Chutney), अंडा भुर्जी (Anda Bhurji), कैंच (Kainch) और सिडू (Siddu) का स्वाद जरूर लेना चाहिए।
  • गढ़वाली व्यंजन (Garhwali Cuisine): कुछ रेस्टोरेंट में आपको गढ़वाली व्यंजन, जैसे कപ്പ (Kappi) और आलू की चट्टी (Aloo ki Chatti) भी मिल सकते हैं।

रानीखेत में खरीदारी

अपनी यात्रा के यादगार के रूप में रानीखेत से कुछ खास चीजें खरीद सकते हैं:

  • हस्तशिल्प : उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के हस्तशिल्प के लिए रानीखेत भी प्रसिद्ध है। आप यहां ऊनी शॉल, टोपी, लकड़ी के खिलौने, मूर्तियां और पेंटिंग्स जैसी हस्तशिल्प की खरीदारी कर सकते हैं।
  • रिंगाल : हिमालय की तलहटी में उगने वाले रिंगाल बांस से बनी टोकरियां, चटाईयां और अन्य सामान रानीखेत में मिलते हैं। ये सामान मजबूत और सुंदर होते हैं।
  • जड़ी-बूटी और मसाले : आयुर्वेदिक दवाओं और मसालों के लिए इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटी रानीखेत में आसानी से मिलती हैं। आप इन्हें अपने इस्तेमाल के लिए या उपहार के रूप में खरीद सकते हैं।
  • स्थानीय शहद : रानीखेत के जंगलों में पाए जाने वाले फूलों से बना शुद्ध शहद भी यहां मिलता है।

रानीखेत की संस्कृति

रानीखेत की संस्कृति कुमाऊं क्षेत्र की समृद्ध परंपराओं को दर्शाती है। यहां के लोक नृत्य, संगीत और कला शैलियाँ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

  • लोक नृत्य : छपेली, बैंडपानी और नौला जैसे लोक नृत्य रानीखेत की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
  • संगीत : कुमाऊंनी लोक संगीत, जिसमें ढोल, रणसिंघा और हुड़का जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है, रानीखेत की संस्कृति में खास स्थान रखता है।

रानीखेत घूमने जाते समय ध्यान देने योग्य बातें

  • रानीखेत घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनें, क्योंकि यहां घूमने में थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ सकती है।
  • ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े साथ लाएं, खासकर अगर आप सर्दियों में यात्रा कर रहे हैं।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें और प्लास्टिक का प्रयोग कम करें।
  • स्थानीय दुकानों से खरीदारी करें और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दें।
  • मोबाइल नेटवर्क सीमित हो सकता है, इसलिए जरूरी बातचीत पहले से कर लें।

रानीखेत पहाड़ों की मनमोहक सुंदरता, रोमांचक गतिविधियों, समृद्ध संस्कृति और स्वादिष्ट भोजन का संगम है। अपनी यात्रा की योजना बनाएं और उत्तराखंड के इस रमणीय हिल स्टेशन में प्रकृति की गोद में कुछ यादगार पल बिताएं।

11. औली: हिमालय की गोद में बसा स्वर्ग

उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों में बसा औली, एक ऐसा हिल स्टेशन है, जो अपनी मनमोहक सुंदरता और रोमांचकारी अनुभवों के लिए जाना जाता है। यह स्थान न केवल प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर खींचता है, बल्कि सर्दियों में स्कीइंग के शौकीनों के लिए भी स्वर्ग से कम नहीं है।

औली का स्थान

औली, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हिमालय की गोद में बसा हुआ है। औली को “औली बुग्याल” के नाम से भी जाना जाता है, जहां “बुग्याल” का अर्थ गढ़वाली भाषा में “मैदानी क्षेत्र” होता है। इसका नाम ही अपने आप में इस स्थान की खासियत बताता है, जो मनोरम घास के मैदानों से घिरा हुआ है।

औली तक कैसे पहुंचें

औली तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश या जोशीमठ पहुंचना होगा। ऋषिकेश से औली लगभग 160 किलोमीटर दूर है, जबकि जोशीमठ से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोशीमठ से औली तक पहुंचने के लिए आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों का सहारा ले सकते हैं। हाल ही में, औली में एशिया की सबसे लंबी और सबसे ऊंची रोपवे में से एक बनाई गई है, जो जोशीमठ को औली से जोड़ती है। यह रोमांचक सफर आपको सीधे बर्फ से ढकी चोटियों के बीच ले जाता है।

औली घूमने का सबसे अच्छा समय

औली घूमने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम माना जाता है, जो दिसंबर से फरवरी के महीनों के बीच होता है। इस दौरान, औली बर्फ की चादर से ढक जाता है, जो स्कीइंग के लिए उपयुक्त होता है। हालांकि, यहां गर्मियों में (मई से जून के बीच) भी घूमने जाया जा सकता है, जब मौसम सुहाना होता है और आसपास के हरे-भरे मैदान मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

औली में रोमांचक गतिविधियां

  • स्कीइंग: औली भारत का प्रमुख स्कीइंग गंतव्य है। यहां विभिन्न प्रकार की स्कीइंग ढलानें हैं, जो शुरुआती और अनुभवी स्कीयर दोनों के लिए उपयुक्त हैं। आप यहां स्कीइंग का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं।
  • स्नोबोर्डिंग: बर्फ से ढकी ढलानों पर स्नोबोर्डिंग का आनंद भी उठाया जा सकता है।
  • ट्रेकिंग: औली से कई तरह के ट्रेकिंग मार्ग शुरू होते हैं, जो गोरसों बुग्याल, पांगर्चा चोटी और तपोवन जैसे खूबसूरत स्थानों तक ले जाते हैं।
  • कैंपिंग: बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच कैंपिंग का अनुभव अविस्मरणीय होता है।
  • रोपवे की सवारी: एशिया की सबसे लंबी रोपवे की सवारी का आनंद लें और मनोरम दृश्यों का लुत्फ उठाएं।

औली के आसपास दर्शनीय स्थल

  • नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान: औली से कुछ ही दूरी पर स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपनी अल्पाइन वनस्पति और दुर्लभ प्रजातियों के लिए जाना जाता है।
  • हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा: यह गुरुद्वारा सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और औली से ट्रेकिंग द्वारा पहुंचा जा सकता है।
  • बद्रीनाथ धाम: औली से बद्रीनाथ धाम तक की धार्मिक यात्रा भी की जा सकती है।

औली में खाने का लुत्फ

औली में आपको भले ही बहुत सारे रेस्टोरेंट न मिलें, लेकिन यहां मिलने वाला स्थानीय भोजन स्वादिष्ट और लज़ीज होता है। गढ़वाली व्यंजन, जैसे कपा (एक प्रकार का दाल का व्यंजन), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) का स्वाद जरूर लें। इसके अलावा, सर्दियों में गरमा गरम गुड़ की चाय या कुल्फी का आनंद लेना न भूलें।

औली की संस्कृति

औली की संस्कृति, उत्तराखंड की समृद्ध पहाड़ी संस्कृति का एक हिस्सा है। यहां के लोग मेहमाननवाज और मिलनसार होते हैं। आप यहां पारंपरिक लोक नृत्यों और संगीत का भी आनंद ले सकते हैं। सर्दियों के दौरान, औली में उगाइन उत्सव का आयोजन किया जाता है, जो रंगारंग और देखने लायक होता है।

औली जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • औली में सर्दियों के दौरान तापमान काफी कम हो जाता है, इसलिए गर्म कपड़े साथ अवश्य ले जाएं।
  • घूमने के लिए अच्छे जूते पहनकर जाएं, जो बर्फ पर फिसलने से बचाएं।
  • सूर्य की तेज किरणों से बचने के लिए सनस्क्रीन और चश्मा साथ रखें।
  • उचित मात्रा में नकदी साथ रखें, क्योंकि औली में एटीएम की सुविधा सीमित है।
  • अपने मोबाइल फोन के लिए पावर बैंक साथ रखें, क्योंकि ठंड का मौसम बैटरी को जल्दी खत्म कर सकता है।

औली की मनमोहक सुंदरता और रोमांचकारी गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। तो फिर देर किस बात की, अपने अगले ट्रिप की योजना में औली को जरूर शामिल करें!

12. देहरादून: प्रकृति, शिक्षा और आध्यात्म का संगम

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शैक्षणिक संस्थानों और आध्यात्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। यह शहर हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है, जहां साल भर हसीन मौसम और मनोरम दृश्य पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं।

देहरादून का इतिहास

देहरादून का इतिहास काफी लंबा है। माना जाता है कि रामायण काल में भगवान राम और लक्ष्मण वनवास के दौरान यहां आए थे। इसके अलावा, द्रोणाचार्य से भी इस स्थान का संबंध जोड़ा जाता है। ब्रिटिश राज के दौरान देहरादून एक महत्वपूर्ण सैन्य केंद्र के रूप में विकसित हुआ।

देहरादून कैसे पहुंचें

देहरादून अच्छी तरह से सड़क, रेल और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है।

  • सड़क मार्ग: देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग NH-707 पर स्थित है और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह दिल्ली से लगभग 230 किलोमीटर दूर है।
  • रेल मार्ग: देहरादून में एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है।
  • हवाई मार्ग: देहरादून से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर जॉली ग्रांट हवाई अड्डा स्थित है, जो कई प्रमुख शहरों के लिए उड़ान सेवाएं प्रदान करता है।

देहरादून में घूमने के लिए प्रमुख स्थान

देहरादून में घूमने के लिए कई खूबसूरत स्थान हैं, जिनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं:

  • टपकेश्वर मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर देहरादून का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
  • पलटन बाजार: खरीदारी के शौकीनों के लिए पलटन बाजार एक आदर्श स्थान है। यहां आपको पारंपरिक वस्त्र, हस्तशिल्प और स्मृति चिन्ह मिल जाएंगे।
  • सहस्रधारा: सहस्रधारा का अर्थ होता है “हज़ार धाराएं”। यह खूबसूरत झरना 17 मीटर की ऊंचाई से गिरता है और अपने आसपास के हरे भरे वातावरण के लिए जाना जाता है।
  • ऋषिकेश: देहरादून से कुछ ही दूरी पर स्थित ऋषिकेश, योग और आध्यात्म का विश्व प्रसिद्ध केंद्र है।
  • राजाजी नेशनल पार्क: वन्यजीव प्रेमियों के लिए राजाजी नेशनल पार्क घूमने का एक बेहतरीन स्थान है। यहां आप हाथी, बाघ, चीतल, गौर आदि जंगली जीवों को देख सकते हैं।

देहरादून में शिक्षा

देहरादून को “शिक्षा नगरी” के रूप में भी जाना जाता है। यहां कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान स्थित हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • भारतीय सैन्य अकादमी (Indian Military Academy – IMA)
  • राष्ट्रीय सहयोग विद्यालय (National Institute of Cooperative Management – NICM)
  • वन अनुसंधान संस्थान (Forest Research Institute – FRI)
  • भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Management Rohtak – IIM Rohtak) का देहरादून परिसर

देहरादून में रहने की व्यवस्था

देहरादून में बजट होटलों से लेकर लक्जरी रिसॉर्ट्स तक, रहने के लिए विभिन्न प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं।

देहरादून में खाने का लुत्फ

देहरादून में आपको उत्तराखंडी व्यंजनों का स्वाद मिल सकता है, साथ ही साथ उत्तर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों के रेस्टोरेंट भी मौजूद हैं।

देहरादून जाने का सबसे अच्छा समय

देहरादून घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च के बीच का माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना रहता है.

देहरादून में आयोजित होने वाले प्रमुख उत्सव

देहरादून में साल भर कई तरह के उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जो पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति से रूबरू कराने का एक शानदार अवसर प्रदान करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उत्सव इस प्रकार हैं:

  • बसंत महोत्सव: फरवरी के महीने में आयोजित होने वाला बसंत महोत्सव, रंगों और खुशियों का त्योहार है। इस दौरान यहां फूलों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
  • आषाढ़ का मेला: हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में टपकेश्वर मंदिर में आषाढ़ का मेला लगता है। इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
  • शिवरात्रि: देहरादून में शिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। टपकेश्वर मंदिर सहित अन्य शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

देहरादून घूमने जाते समय ध्यान देने योग्य बातें

  • देहरादून में गर्मियों के दौरान (मई-जून) तापमान थोड़ा अधिक हो सकता है, इसलिए हल्के कपड़े साथ ले जाएं।
  • सर्दियों के मौसम (दिसंबर-फरवरी) में मौसम ठंडा हो जाता है, इसलिए गर्म कपड़े रखना न भूलें।
  • घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं।
  • सूर्य की किरणों से बचने के लिए सनस्क्रीन और चश्मा साथ रखें।
  • कुछ पहाड़ी इलाकों में जाने के लिए टैक्सी किराए पर लेनी पड़ सकती है, इसलिए नकदी साथ रखना उचित रहेगा।

पहाड़ों की खूबसूरती, आध्यात्मिक स्थलों की शांति और शैक्षणिक संस्थानों की गरिमा, देहरादून को घूमने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है। तो देर किस बात की, अपने अगले ट्रिप की प्लानिंग में देहरादून को जरूर शामिल करें!

13. लैंसडाउन: उत्तराखंड का शांत और सुरम्य हिल स्टेशन

उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों में बसा लैंसडाउन, एक ऐसा हिल स्टेशन है, जो अपनी शांत वातावरण, मनोरम दृश्यों और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह स्थान उन लोगों के लिए आदर्श है, जो पहाड़ों की कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में सुकून के कुछ पल बिताना चाहते हैं।

लैंसडाउन का इतिहास

लैंसडाउन को मूल रूप से “कालूडाण्डा” के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ गढ़वाली भाषा में “काले पहाड़” होता है। सन 1887 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन द्वारा इसकी स्थापना की गई और उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम लैंसडाउन रखा गया। ब्रिटिश राज के दौरान इसका इस्तेमाल सैन्य छावनी के रूप में किया जाता था। आज भी यहां गढ़वाल राइफल्स की रेजिमेंटल सेंटर स्थित है।

लैंसडाउन कैसे पहुंचें

लैंसडाउन तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश से लैंसडाउन लगभग 160 किलोमीटर दूर है। यहां से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा लैंसडाउन पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन भी ऋषिकेश में ही है।

लैंसडाउन घूमने का सबसे अच्छा समय

लैंसडाउन घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों का मौसम (मार्च से मई के बीच) माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना होता है और आसपास के पहाड़ों की हरियाली मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है। हालांकि, सर्दियों (दिसंबर से फरवरी के बीच) में यहां का मौसम ठंडा हो जाता है और पहाड़ों पर बर्फ जमने का नजारा देखने को मिलता है।

लैंसडाउन में घूमने के लिए प्रमुख स्थान

  • टिप एन टॉप: लैंसडाउन का सबसे ऊंचा स्थान टिप एन टॉप है, जहां से आप हिमालय की चोटियों का मनोरम दृश्य देख सकते हैं।
  • दरवान सिंह संग्रहालय: इस संग्रहालय में गढ़वाल राइफल्स के इतिहास और वीरता से जुड़ी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं।
  • तार्केश्वर महादेव मंदिर: माना जाता है कि यह प्राचीन मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। शिवरात्रि के पर्व पर यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।
  • भूला ताल: लैंसडाउन के बीचों बीच स्थित यह छोटा ताल पिकनिक मनाने के लिए एक अच्छी जगह है।
  • सेंट मैरी चर्च: यह खूबसूरत चर्च ब्रिटिश काल की स्थापत्य कला का एक बेहतरीन उदाहरण है।

लैंसडाउन में रोमांचक गतिविधियां

  • ट्रेकिंग: लैंसडाउन से कई तरह के ट्रेकिंग मार्ग शुरू होते हैं, जो आसपास के खूबसूरत स्थानों तक ले जाते हैं।
  • पैराग्लाइडिंग: रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक टिप एन टॉप से पैराग्लाइडिंग का आनंद ले सकते हैं।
  • बर्डवॉचिंग: लैंसडाउन विभिन्न प्रकार के पक्षियों का घर है। यहां बर्डवॉचिंग का शौक पूरा किया जा सकता है।

लैंसडाउन में खाने का लुत्फ

लैंसडाउन में आपको भले ही बहुत सारे रेस्टोरेंट न मिलें, लेकिन यहां मिलने वाला स्थानीय भोजन स्वादिष्ट और लजीज होता है। गढ़वाली व्यंजन, जैसे कपा (एक प्रकार का दाल का व्यंजन), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू स्वादिष्ट होता है।

लैंसडाउन में रहने की व्यवस्था

लैंसडाउन में पर्यटकों के लिए कई तरह के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें सरकारी गेस्ट हाउस, निजी होटल और रिसॉर्ट शामिल हैं।

लैंसडाउन जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • लैंसडाउन एक छोटा हिल स्टेशन है, इसलिए यहां ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती है।
  • घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं, क्योंकि यहां कई जगहों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है।
  • लैंसडाउन में ठंड का मौसम जल्दी शुरू हो जाता है, इसलिए गर्म कपड़े साथ ले जाना न भूलें।
  • कुछ दुकानों को छोड़कर यहां एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।
  • मोबाइल नेटवर्क भी कुछ कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।

लैंसडाउन की शांत सुंदरता और प्राकृतिक वातावरण आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। तो अगर आप पहाड़ों की गोद में शांतिपूर्ण छुट्टियां बिताना चाहते हैं, तो लैंसडाउन आपके लिए एक आदर्श गंतव्य हो सकता है।

14. मुक्तेश्वर: उत्तराखंड का शांत पर्वतीय स्थल

उत्तराखंड के खूबसूरत कुमाऊं पहाड़ियों में बसा मुक्तेश्वर, प्रकृति प्रेमियों और शांति चाहने वालों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। यह हिल स्टेशन अपने मनोरम दृश्यों, धार्मिक महत्व और रोमांचक गतिविधियों के लिए जाना जाता है।

मुक्तेश्वर का नामकरण

मुक्तेश्वर नाम की उत्पत्ति 350 साल पुराने शिव मंदिर, “मुक्तेश्वर धाम” से हुई है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक धर्मात्मा व्यक्ति ने करवाया था।

मुक्तेश्वर का इतिहास

मुक्तेश्वर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों द्वारा इसकी खोज की गई थी। उन्होंने यहां ठंड के मौसम में रहने के लिए ग्रीष्मकालीन निवास बनाए।

मुक्तेश्वर कैसे पहुंचें

मुक्तेश्वर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको काठगोदाम या हल्द्वानी पहुंचना होगा। काठगोदाम से मुक्तेश्वर लगभग 82 किलोमीटर दूर है, जबकि हल्द्वानी से दूरी 72 किलोमीटर है। इन दोनों शहरों से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा मुक्तेश्वर पहुंच सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा भी काठगोदाम में ही स्थित है।

मुक्तेश्वर घूमने का सबसे अच्छा समय

मुक्तेश्वर घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून के बीच का माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना रहता है और चारों ओर हरियाली का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है। सर्दियों में (दिसंबर से फरवरी के बीच) यहां का मौसम ठंडा हो जाता है। हिमालय की चोटियों पर बर्फ जम जाती है, जो एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत करता है। हालांकि, बर्फीले रास्तों के कारण सर्दियों में यात्रा करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।

मुक्तेश्वर में घूमने के लिए प्रमुख स्थान

  • मुक्तेश्वर धाम: मुख्य आकर्षण 350 साल पुराना शिव मंदिर है। मंदिर परिसर से हिमालय की चोटियों का अद्भुत नजारा दिखाई देता है।
  • चौखी जाली: यह एक छोटी सी पहाड़ी है, जहां पहुंचने के लिए थोड़ी ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखना अविस्मरणीय होता है।
  • फलों के बागीचे: मुक्तेश्वर अपने सेब, आड़ू और लीची के बागों के लिए प्रसिद्ध है। आप यहां बागों की सैर कर सकते हैं और ताजे फल खरीद सकते हैं।
  • चॉकलेट हाउस: चॉकलेट प्रेमियों के लिए यह एक स्वर्ग है। यहां आप विभिन्न प्रकार की स्वादिष्ट चॉकलेट्स का आनंद ले सकते हैं।

मुक्तेश्वर में रोमांचक गतिविधियां

  • पैराग्लाइडिंग: रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक चौखी जाली से पैराग्लाइडिंग का आनंद ले सकते हैं और हिमालय की ऊंचाईयों से नीचे उड़ने का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
  • रॉक क्लाइम्बिंग और रैपलिंग: मुक्तेश्वर में चट्टानों पर रॉक क्लाइम्बिंग और रैपलिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।
  • ट्रेकिंग: प्रकृति प्रेमी आसपास के खूबसूरत स्थानों, जैसे गरुड़ गंगा और भटकोट झील तक ट्रेकिंग का आनंद ले सकते हैं।

मुक्तेश्वर में खाने का लुत्फ

मुक्तेश्वर में आपको भले ही बहुत सारे रेस्टोरेंट न मिलें, लेकिन यहां मिलने वाला स्थानीय भोजन स्वादिष्ट होता है.

कुमाऊंनी व्यंजन, जैसे कपा (एक प्रकार का दाल का व्यंजन), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) का स्वाद जरूर लें। इसके अलावा, सर्दियों में गरमा गरम गुड़ की चाय या कुल्फी का आनंद लेना न भूलें।

मुक्तेश्वर में रहने की व्यवस्था

मुक्तेश्वर में पर्यटकों के लिए कई तरह के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें होमस्टे, बजट होटल, और लक्जरी रिसॉर्ट शामिल हैं।

मुक्तेश्वर जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • मुक्तेश्वर एक छोटा हिल स्टेशन है, इसलिए यहां ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती है।
  • घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं, क्योंकि यहां कई जगहों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है।
  • मोबाइल नेटवर्क थोड़े कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।
  • कुछ दुकानों को छोड़कर यहां एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।

मुक्तेश्वर की शांत सुंदरता, हिमालय की मनमोहक छटा और रोमांचक गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। तो फिर देर किस बात की, अपने अगले ट्रिप की योजना में मुक्तेश्वर को जरूर शामिल करें!

15. गंगोत्री: पवित्र गंगा नदी का उद्गम स्थल

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री, हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसे मां गंगा का “मूल स्थान” माना जाता है, जहां से पवित्र गंगा नदी का सफर शुरू होता है।

गंगोत्री का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं। भगीरथ, राजा दिलीप के पुत्र, ने कठोर तपस्या कर मां गंगा को पृथ्वी पर लाने का वरदान प्राप्त किया था। गंगोत्री वही स्थान है, जहां मां गंगा भगीरथ के जटाओं में धारण होकर पृथ्वी पर उतरी थीं। इसलिए, गंगोत्री में गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है।

गंगोत्री मंदिर

गंगोत्री का मुख्य आकर्षण गंगोत्री मंदिर है, जो 18वीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर की वास्तुकला शैली उत्तराखंड की पारंपरिक शैली से प्रेरित है। मंदिर के गर्भगृह में मां गंगा की एक चांदी की मूर्ति स्थापित है। श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना कर मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

गंगोत्री कैसे पहुंचें

गंगोत्री तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश या उत्तरकाशी पहुंचना होगा। ऋषिकेश से गंगोत्री लगभग 160 किलोमीटर दूर है, जबकि उत्तरकाशी से दूरी मात्र 99 किलोमीटर है। ऋषिकेश और उत्तरकाशी से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा गंगोत्री पहुंच सकते हैं। हाल ही में, गंगोत्री और जौलीग्रांट के बीच एशिया की सबसे लंबी रोपवे का निर्माण किया गया है। यह रोमांचक सफर आपको सीधे बर्फ से ढकी चोटियों के बीच ले जाता है।

गंगोत्री घूमने का सबसे अच्छा समय

गंगोत्री घूमने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर के बीच का माना जाता है। इन महीनों में मौसम सुहाना रहता है और यात्रा करना आसान होता है। हालांकि, नवंबर से अप्रैल के बीच गंगोत्री में काफी ठंड पड़ती है और भारी हिमपात के कारण मंदिर का प्रवेश द्वार बंद कर दिया जाता है।

गंगोत्री के आसपास दर्शनीय स्थल

  • गोमुख: गोमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुख है, जहां से गंगा नदी निकलती है। यह स्थान गंगोत्री से लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है।
  • सूर्यकुंड: गंगोत्री से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित सूर्यकुंड, एक प्राकृतिक गर्म पानी का कुंड है। माना जाता है कि यहां स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं।
  • जैसाधार: जैसाधार गंगोत्री से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक खूबसूरत घाटी है। यह स्थान अपने मनोरम दृश्यों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।

गंगोत्री में रोमांचक गतिविधियां

  • ट्रेकिंग: गंगोत्री से गोमुख तक की ट्रेकिंग प्रकृति प्रेमियों के लिए एक रोमांचक अनुभव हो सकता है।
  • राफ्टिंग: गंगोत्री से कुछ दूर स्थित ऋषिकेश में आप रिवर राफ्टिंग का रोमांचक अनुभव ले सकते हैं।

गंगोत्री में रहने की व्यवस्था

गंगोत्री में सीमित मात्रा में ही होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। आप गंगोत्री से कुछ किलोमीटर पहले या बाद में स्थित अन्य स्थानों, जैसे उत्तरकाशी या गोमुख (मई-जून के महीनों में ही) में भी रहने की व्यवस्था ढूंढ सकते हैं।

गंगोत्री जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • गंगोत्री ठंडे पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, इसलिए गर्म कपड़े साथ अवश्य ले जाएं। मई-जून के अलावा, यहां बारिश होने की भी संभावना रहती है, इसलिए जलरोधी जैकेट रखना न भूलें।
  • गंगोत्री में शराब और मांसाहार का सेवन वर्जित है।
  • ऊंचाई वाले क्षेत्र होने के कारण यहां सांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। अस्थमा या हृदय रोग से पीड़ित लोगों को यात्रा करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
  • गंगोत्री में एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।
  • मोबाइल नेटवर्क भी कुछ कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।

गंगोत्री की धार्मिक पवित्रता, प्राकृतिक सौंदर्य और रोमांचकारी ट्रेकिंग मार्ग आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। तो अगर आप हिमालय की अनुपम छटा के बीच आध्यात्मिक शांति की अनुभूति करना चाहते हैं, तो अपनी यात्रा कार्यक्रम में गंगोत्री को जरूर शामिल करें!

16. यमुनोत्री: पवित्र यमुना नदी का उद्गम स्थल

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित यमुनोत्री, हिमालय की गोद में बसा एक धार्मिक स्थल है। यह माना जाता है कि यहीं से पवित्र यमुना नदी का उद्गम होता है। हिंदू धर्म में यमुना नदी को गंगा नदी की बहन माना जाता है और यमुनोत्री धाम, चार धाम यात्रा का प्रारंभिक बिंदु भी है।

यमुनोत्री का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, यमुना नदी सूर्यदेव की पुत्री और यमराज की बहन हैं। यमुना नदी का पवित्र जल मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। यमुनोत्री में स्थित मंदिर में यमुना देवी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री का मुख्य आकर्षण यमुनोत्री मंदिर है। यह मंदिर काले ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ है और 18वीं शताब्दी में जयपुर की रानी गुलेरिया द्वारा बनवाया गया था। मंदिर के गर्भगृह में यमुना देवी की काले संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना कर यमुना देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

यमुनोत्री कैसे पहुंचें

यमुनोत्री तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको っており (उत्तरकाशी) पहुंचना होगा। उत्तरकाशी से यमुनोत्री लगभग 19 किलोमीटर दूर है। आप यहां टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा पहुंच सकते हैं। हालांकि, अंतिम कुछ किलोमीटर की दूरी पैदल या पालकी द्वारा ही तय करनी पड़ती है।

यमुनोत्री घूमने का सबसे अच्छा समय

यमुनोत्री घूमने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर के बीच का माना जाता है। इन महीनों में बर्फ पिघल जाती है और यात्रा करना आसान हो जाता है। नवंबर से अप्रैल के बीच यमुनोत्री में भारी बर्फबारी होती है, जिसके कारण सड़कें बंद हो जाती हैं और मंदिर का प्रवेश द्वार भी बंद कर दिया जाता है।

यमुनोत्री के आसपास दर्शनीय स्थल

  • सुरकुंड: यमुनोत्री मंदिर के पास ही स्थित सुरकुंड एक गर्म जल का कुंड है। माना जाता है कि यहां स्नान करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • हनुमान चट्टी: यमुनोत्री से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हनुमान चट्टी एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर से यमुनोत्री धाम का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
  • जम्नोत्री ग्लेशियर: यमुनोत्री ग्लेशियर यमुना नदी का स्रोत माना जाता है। यह स्थान यमुनोत्री से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए थोड़ी कठिन ट्रेकिंग करनी पड़ती है।

यमुनोत्री में खाने का लुत्फ

यमुनोत्री में आपको भोजनालयों की अधिक सुविधा नहीं मिलेगी। यहां मिलने वाला स्थानीय भोजन, जैसे कपा (दाल का व्यंजन), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) स्वादिष्ट होता है।

यमुनोत्री में रहने की व्यवस्था

यमुनोत्री में ठहरने के लिए सीमित विकल्प उपलब्ध हैं। आप यमुनोत्री से कुछ किलोमीटर पहले

या बाद में स्थित अन्य स्थानों, जैसे जanki चट्टी या उत्तरकाशी में होटल या गेस्ट हाउस ढूंढ सकते हैं।

यमुनोत्री जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • यमुनोत्री ठंडे पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, इसलिए गर्म कपड़े साथ ले जाना न भूलें। मई-जून के अलावा, यहां बारिश होने की भी संभावना रहती है, इसलिए जलरोधी जैकेट रखना उचित रहेगा।
  • यमुनोत्री में शराब और मांसाहार का सेवन वर्जित है।
  • ऊंचाई वाले क्षेत्र होने के कारण यहां सांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। अस्थमा या हृदय रोग से पीड़ित लोगों को यात्रा करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
  • यमुनोत्री में एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।
  • मोबाइल नेटवर्क भी कुछ कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।

यमुनोत्री की धार्मिक पवित्रता, मनोरम दृश्य और यमुना नदी का पवित्र जल आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। यदि आप हिमालय की अनुपम छटा के बीच आध्यात्मिक शांति की अनुभूति करना चाहते हैं, तो अपनी चार धाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से अवश्य करें!

17. फूलों की घाटी: उत्तराखंड का स्वर्ग

उत्तराखंड के पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में बसा फूलों की घाटी (वैली ऑफ फ्लावर्स), प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। यह राष्ट्रीय उद्यान अपने नाम के अनुरूप, रंग-बिरंगे फूलों के विशाल कालीन से ढका हुआ है।

फूलों की घाटी का इतिहास

फूलों की घाटी को 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोहियों के एक दल द्वारा खोजा गया था। माना जाता है कि यह घाटी सदियों से हिमालयी क्षेत्र में अलग-थलग पड़ी रही, जिसके कारण यहां दुर्लभ वनस्पति का खजाना विकसित हुआ। 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और 2005 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा भी प्राप्त हुआ।

फूलों की घाटी कैसे पहुंचें

फूलों की घाटी तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश या उत्तरकाशी पहुंचना होगा। ऋषिकेश से फूलों की घाटी लगभग 210 किलोमीटर दूर है, जबकि उत्तरकाशी से दूरी 170 किलोमीटर है। इन दोनों शहरों से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा गोविंदघाट पहुंच सकते हैं। गोविंदघाट से फूलों की घाटी तक 19 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए आपको ट्रैकिंग करनी पड़ती है।

फूलों की घाटी घूमने का सबसे अच्छा समय

फूलों की घाटी घूमने का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर के बीच का माना जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के फूल खिलते हैं, जो घाटी को रंगीन बना देते हैं। मानसून के बाद का मौसम भी यहां घूमने के लिए उपयुक्त होता है, लेकिन बारिश होने की संभावना रहती है। अक्टूबर के बाद मौसम ठंडा हो जाता है और बर्फबारी शुरू हो जाती है, जिससे ट्रैकिंग करना मुश्किल हो जाता है।

फूलों की घाटी के फूल

फूलों की घाति की खासियत यहां पाए जाने वाले लगभग 600 से अधिक प्रजातियों के फूल हैं। इनमें ब्रह्मकमल, ऑर्किड, प्रिम्यूला, गेंदे, डेज़ी और एनीमोन जैसे दुर्लभ और सुंदर फूल शामिल हैं। जुलाई से सितंबर के महीनों में ये फूल खिलकर पूरे घाटी को रंगीन चादर ओढ़ा देते हैं।

फूलों की घाटी का वन्यजीव

फूलों की घाटी न केवल दुर्लभ वनस्पतियों के लिए बल्कि जंगली जीवों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां हिमालयी थार, भूरे भालू, कस्तूरी मृग, लाल लोमड़ी, काले भेडे और विभिन्न प्रजातियों के पक्षी देखने को मिल सकते हैं। हालांकि, जंगली जीवों को देखना आपकी किस्मत पर निर्भर करता है।

फूलों की घाटी में ट्रैकिंग

फूलों की घाटी तक पहुंचने के लिए ट्रैकिंग ही एकमात्र रास्ता है। गोविंदघाट से फूलों की घाटी तक का ट्रैक लगभग 19 किलोमीटर का है और इसे पूरा करने में आपको 6 से 7 घंटे का समय लग सकता है। ट्रैकिंग का रास्ता मध्यम कठिनाई वाला माना जाता है। रास्ते में आपको घने जंगल, खूबसूरत घास के मैदान और नदियों को पार करना पड़ सकता है।

फूलों की घाटी में रहने की व्यवस्था

फूलों की घाटी के अंदर कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं है। आप गोविंदघाट में होटल या गेस्ट हाउस में ठहर सकते हैं। कुछ तीर्थयात्री गंगोत्री में भी रुकना पसंद करते हैं।

फूलों की घाटी जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान है, इसलिए यहां प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित है। साथ ही, पौधों को नुकसान पहुंचाने या फूल तोड़ने से भी बचें।
  • फूलों की घाटी तक की ट्रैकिंग में शारीरिक श्रम लगता है। इसलिए, यात्रा से पहले अपनी शारीरिक फिटनेस का ध्यान रखें।
  • ऊंचाई वाले क्षेत्र होने के कारण यहां ठंड पड़ती है। गर्म कपड़े, ट्रेकिंग शूज और रेनकोट साथ ले जाना न भूलें।
  • फूलों की घाटी में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है, इसलिए जरूरी सामान साथ रखें।
  • फूलों की घाटी में खाने-पीने की सुविधा सीमित है। आप गोविंदघाट से आवश्यक खाद्य सामग्री साथ ले जा सकते हैं।

फूलों की घाटी की मनमोहक सुंदरता, रंग-बिरंगे फूलों का कालीन और ट्रैकिंग का रोमांच आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। तो अगर आप प्रकृति की गोद में खो जाना चाहते हैं, तो फूलों की घाटी की यात्रा जरूर शामिल करें!

18. कौसानी: उत्तराखंड का स्वर्गद्वार

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बसा कौसानी, अपनी मनोरम दृश्यावली और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। इसे “भारत का स्विट्जरलैंड” भी कहा जाता है। कौसानी हिमालय की ऊंची चोटियों का अद्भुत नजारा पेश करता है, साथ ही साथ प्रकृति प्रेमियों और शांति चाहने वालों के लिए यह एक आदर्श स्थल है। आइए, इस लेख में कौसानी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।

कौसानी का नामकरण

कौसानी नाम की उत्पत्ति को लेकर कई मत हैं। माना जाता है कि इसका नाम “कोशी” शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है – छोटा कोष। एक अन्य मत के अनुसार, यह नाम “कुसुम स्थली” से बना है, जिसका अर्थ है – फूलों की भूमि।

कौसानी का इतिहास

कौसानी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों द्वारा इसकी खोज की गई थी। उन्होंने यहां ठंड के मौसम में रहने के लिए ग्रीष्मकालीन निवास बनाए। 20वीं शताब्दी में कवि सुमित्रानंदन पंत ने कौसानी की खूबसूरती का वर्णन अपनी कविताओं में किया, जिसके बाद से यह पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हो गया।

कौसानी कैसे पहुंचें

कौसानी तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको काठगोदाम या हल्द्वानी पहुंचना होगा। काठगोदाम से कौसानी लगभग 82 किलोमीटर दूर है, जबकि हल्द्वानी से दूरी 72 किलोमीटर है। इन दोनों शहरों से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा कौसानी पहुंच सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा भी काठगोदाम में ही स्थित है।

कौसानी घूमने का सबसे अच्छा समय

कौसानी घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून के बीच का माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना रहता है और चारों ओर हरियाली का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है। सर्दियों में (दिसंबर से फरवरी के बीच) यहां का मौसम ठंडा हो जाता है। हिमालय की चोटियों पर बर्फ जम जाती है, जो एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत करता है। हालांकि, बर्फीले रास्तों के कारण सर्दियों में यात्रा करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।

कौसानी के दर्शनीय स्थल

  • अनासक्ति आश्रम: महात्मा गांधी 1929 में कुछ समय के लिए अनासक्ति आश्रम में रुके थे। यह आश्रम शांत वातावरण में स्थित है और यहां से हिमालय का अद्भुत नजारा दिखाई देता है।
  • टंकपुर चौखी: टंकपुर चौखी एक छोटी सी पहाड़ी है, जहां पहुंचने के लिए थोड़ी सी ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखना अविस्मरणीय होता है।
  • गिरथा चाय बागान: कौसानी अपने चाय बागानों के लिए भी जाना जाता है। गिरथा चाय बागान में आप चाय बागानों की सैर कर सकते हैं और ताजी चाय का आनंद ले सकते हैं।

कौसानी में रोमांचक गतिविधियां

  • पैराग्लाइडिंग: रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक टंकपुर चौखी से पैराग्लाइडिंग का आनंद ले सकते हैं और हिमालय की ऊंचाईयों से नीचे उड़ने का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
  • ट्रेकिंग: प्रकृति प्रेमी आसपास के खूबसूरत स्थानों, जैसे गरुड़ गंगा और भटकोट झील तक ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं।

कौसानी का स्थानीय भोजन

कौसानी में आपको मिलने वाला स्थानीय भोजन स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

कपा (एक प्रकार की दाल), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) का स्वाद जरूर लें। सर्दियों में गरमा गरम गुड़ की चाय या कुल्फी का आनंद लेना न भूलें।

कौसानी में रहने की व्यवस्था

कौसानी में पर्यटकों के लिए कई तरह के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें होमस्टे, बजट होटल और लक्जरी रिसॉर्ट शामिल हैं।

कौसानी जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • कौसानी एक छोटा सा हिल स्टेशन है, इसलिए यहां ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती है।
  • घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं, क्योंकि यहां कई जगहों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है।
  • मोबाइल नेटवर्क थोड़े कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।
  • कुछ दुकानों को छोड़कर यहां एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।

कौसानी की शांत सुंदरता, हिमालय की मनमोहक छटा और रोमांचक गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। तो फिर देर किस बात की, अपने अगले ट्रिप की योजना में कौसानी को जरूर शामिल करें!

19. चकराता: उत्तराखंड का शांत पर्वतीय स्थल

उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित चकराता, अपनी खूबसूरती और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यह कभी अंग्रेजों का पसंदीदा ग्रीष्मकालीन रिज़ॉर्ट हुआ करता था। आज भी चकराता उन लोगों के लिए आदर्श गंतव्य है, जो शहरी कोलाहल से दूर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना चाहते हैं।

चकराता का इतिहास

चकराता का इतिहास 19वीं शताब्दी का है। सन 1869 में अंग्रेजों ने इसे अपने ग्रीष्मकालीन रिज़ॉर्ट के रूप में विकसित किया। यहां ठंडे मौसम और शांत वातावरण का आनंद लेने के लिए उन्होंने कई भवन बनवाए। आज भी चकराता के वास्तुशिल्प में ब्रिटिश प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

चकराता कैसे पहुंचें

चकराता तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको देहरादून पहुंचना होगा। देहरादून से चकराता लगभग 88 किलोमीटर दूर है। आप यहां टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन भी देहरादून में ही स्थित है।

चकराता घूमने का सबसे अच्छा समय

चकराता घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का माना जाता है। इन महीनों में मौसम सुहाना रहता है और घूमने-फिरने में आनंद आता है। मानसून के दौरान (जुलाई और अगस्त) में यहां अधिक बारिश होती है, जिससे सड़कें खराब हो सकती हैं। सर्दियों में (दिसंबर से फरवरी के बीच) चकराता काफी ठंडा हो जाता है।

चकराता के दर्शनीय स्थल

  • टाइगर फॉल: चकराता से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित टाइगर फॉल, यहां का प्रमुख आकर्षण है। यह झरना लगभग 300 मीटर की ऊंचाई से गिरता है और इसका मनमोहक दृश्य देखने लायक होता है। आप यहां ट्रैकिंग करके पहुंच सकते हैं।
  • मसूरी लेक: चकराता घूमने आए हैं, तो मसूरी की खूबसूरत झील को भी जरूर देखें। मसूरी, चकराता से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां आप बोटिंग का आनंद ले सकते हैं और प्राकृतिक सौंदर्य का मजा ले सकते हैं।
  • थुनाग जनजातीय संग्रहालय: इस संग्रहालय में थुनाग जनजाति की कला, संस्कृति और परंपरा से जुड़ी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है।
  • चर्च ऑफ द इपीफनी: चकराता में स्थित चर्च ऑफ द इपीफनी, ब्रिटिश वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है। 1879 में निर्मित यह चर्च शांत वातावरण में स्थित है।

चकराता में रोमांचक गतिविधियां

  • ट्रेकिंग: चकराता के आसपास कई खूबसूरत पहाड़ियां हैं, जहां आप ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं। टाइगर हिल और देoban कुछ लोकप्रिय ट्रैकिंग मार्ग हैं।
  • रॉक क्लाइंबिंग: रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक चकराता में रॉक क्लाइंबिंग का रोमांच भी ले सकते हैं। यहां कुछ संस्थाएं रॉक क्लाइंबिंग की ट्रेनिंग भी देती हैं।
  • पैराग्लाइडिंग: थोड़ी दूर स्थित देहरादून में पैराग्लाइडिंग की सुविधा उपलब्ध है।

चकराता का स्थानीय भोजन

चकराता में आपको मिलने वाला स्थानीय भोजन, पहाड़ी क्षेत्रों का पारंपरिक व्यंजन

होता है। कപ്പ (दाल का एक प्रकार), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) का स्वाद जरूर लें। सर्दियों में गरमा गरम गुड़ की चाय का आनंद लेना न भूलें।

चकराता में रहने की व्यवस्था

चकराता में पर्यटकों के लिए कई तरह के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें सरकारी गेस्ट हाउस, होमस्टे और बजट होटल शामिल हैं।

चकराता जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • चकराता एक शांत पहाड़ी क्षेत्र है। यहां रात में ज्यादा रौनक नहीं होती है।
  • चकराता में घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं, क्योंकि यहां कई जगहों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है।
  • मोबाइल नेटवर्क थोड़े कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।
  • चकराता में एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।

चकराता की शांत सुंदरता, मनोरम दृश्य और रोमांचक गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। प्रकृति की गोद में सुकून के कुछ पल बिताने के लिए चकराता की यात्रा जरूर शामिल करें!

20. कनाताल: उत्तराखंड का शांत पर्वतीय रत्न

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में बसा कनाताल, प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण से भरपूर एक आकर्षक पर्वतीय स्थल है। यह उन लोगों के लिए आदर्श गंतव्य है, जो शहरी कोलाहल से दूर हिमालय की तलहटी में कुछ सुकून के पल बिताना चाहते हैं।

कनाताल का इतिहास

कनाताल का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। माना जाता है कि 20वीं सदी के मध्य में इसकी खोज की गई थी। शुरुआत में यह एक छोटा सा गांव था, लेकिन धीरे-धीरे पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होने लगा। आज कनाताल प्रकृति प्रेमियों और साहसी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।

कनाटल कैसे पहुंचें

कनाताल तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको देहरादून या ऋषिकेश पहुंचना होगा। देहरादून से कनाताल लगभग 78 किलोमीटर दूर है, जबकि ऋषिकेश से दूरी 38 किलोमीटर है। इन दोनों शहरों से आप टैक्सी या राज्य परिवहन की बसों द्वारा मुससूरी-चंबा मार्ग पर स्थित कनाताल पहुंच सकते हैं। हालांकि, अंतिम कुछ किलोमीटर की दूरी पैदल या पालकी द्वारा ही तय करनी पड़ती है।

कनाताल घूमने का सबसे अच्छा समय

कनाताल घूमने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का माना जाता है। इन महीनों में मौसम सुहाना रहता है और पहाड़ों की खूबसूरती देखने लायक होती है। मानसून के दौरान (जुलाई और अगस्त) में यहां अधिक बारिश होती है, जिससे सड़कें खराब हो सकती हैं। सर्दियों में (दिसंबर से फरवरी के बीच) कनाताल काफी ठंडा हो जाता है और बर्फबारी भी हो सकती है।

कनाताल के दर्शनीय स्थल

  • सुरकुंड: कनाताल मंदिर के पास ही स्थित सुरकुंड एक गर्म जल का कुंड है। माना जाता है कि यहां स्नान करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • हनुमान चट्टी: कनाताल से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हनुमान चट्टी एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर से कनाटल धाम का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
  • टिब्बा टॉप: टिब्बा टॉप कनाटल का सबसे ऊंचा स्थान है। यहां से हिमालय की चोटियों का मनमोहक नजारा दिखाई देता है।

कनाताल में रोमांचक गतिविधियां

  • ट्रेकिंग: कनाताल के आसपास कई खूबसूरत पहाड़ियां हैं, जहां आप ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं। जमनोत्री ग्लेशियर तक की ट्रैकिंग यहां का लोकप्रिय रोमांच है।
  • कैंपिंग: कनाताल शांत वातावरण में कैंपिंग करने के लिए एक आदर्श स्थान है। यहां कई टूर ऑपरेटर कैंपिंग की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • रैपलिंग: रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक कनाताल में रैपलिंग का रोमांच भी ले सकते हैं।

कनाताल का स्थानीय भोजन

कनाताल में आपको मिलने वाला स्थानीय भोजन स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।कपा (दाल का एक प्रकार), भट्ट की चटनी, आलू की चट्टी, और सिडू (गेहूं के आटे की रोटी) का स्वाद जरूर लें। सर्दियों में गरमा गरम गुड़ की चाय का आनंद लेना न भूलें।

कनाटल में रहने की व्यवस्था

कनाताल में पर्यटकों के लिए कई तरह के ठहरने के विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें होमस्टे, बजट होटल और लक्जरी रिसॉर्ट शामिल हैं।

कनाताल जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • कनाताल एक शांत पहाड़ी क्षेत्र है, इसलिए यहां ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती है।
  • घूमने के लिए आरामदायक जूते पहनकर जाएं, क्योंकि यहां कई जगहों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है।
  • मोबाइल नेटवर्क थोड़े कमजोर हो सकते हैं, इसलिए जरूरी कॉल्स के लिए पहले से तैयारी कर लें।
  • कनाताल में एटीएम की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में नकदी साथ रखें।

कनाताल की शांत सुंदरता, हिमालय की मनमोहक छटा और रोमांचक गतिविधियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। प्रकृति की कोख में शांतिपूर्ण छुट्टियां बिताने के लिए कनाताल की यात्रा आपके मन को तृप्त कर देगी!

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